*और साथ में ही जानेंगे क्या पिता पैतृक संपत्ति को बेच सकता है या उसकी वसीयत कर सकता है
मिताक्षरा और दाय भाग दोनों ही हिंदू विधि की शाखाएं हैं और हिंदुओं में इन्हीं के अनुसार उत्तराधिकार प्राप्त होता है लेकिन यहां पर महत्वपूर्ण बात है कि कौन सी शाखा कहां पर लागू होती है
हिंदू विधि की प्रथम शाखा मिताक्षरा तथा दूसरी शाखा दायभाग है दायभाग का सिद्धांत बंगाल में प्रचलित हैं तथा मिताक्षरा के सिद्धांत भारत में प्रचलित हैं
चलिए जान लेते हैं मिताक्षरा और दाय भाग के सिद्धांतों में क्या अंतर है
1. मिताक्षरा मिताक्षरा शाखा में पुत्र का पिता की पैतृक संपत्ति में जन्म से ही अधिकार हो जाता है पुत्र पिता के साथ सहस्वामी होता है संपत्ति के हस्तांतरण करने का पिता का अधिकार उसके पुत्र के अधिकार के कारण नियंत्रण में रहता है तथा पिता के मरने के बाद पुत्र उसके अंश को उत्तरजीविता से प्राप्त करता है
दोस्तों स्पष्ट शब्दों में मिताक्षरा प्रथा जो है वह अपने भारत में प्रचलित है मिताक्षरा प्रथा के अनुसार
जो आपके पिता की पैतृक संपत्ति है उस पर पुत्र का अधिकार जन्म से होता है और वह पिता के साथ ही उस पैतृक संपत्ति पर सह स्वामी होता है |
तो इसलिए भविष्य में अगर पिता उस पैतृक संपत्ति को बेचता है या किसी विशेष एक पुत्र को रजिस्ट्री करता है या वसीयत कराता है तो ऐसी स्थिति में पिता ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि हिंदू विधि मिताक्षरा के अनुसार पिता की पैतृक संपत्ति में पुत्र का जन्म से अधिकार होने के कारण पिता के अधिकार पैतृक संपत्ति पर सीमित रहते हैं
इसलिए हिंदू विधि के अनुसार भारत में पिता अपनी पैतृक संपत्ति को किसी एक विशेष पुत्र को ना तो वसीयत कर सकता है और ना ही बिना पुत्र की इजाजत के वह पैतृक संपत्ति को बेच सकता है
नोट1- दोस्तों वैसे तो कई मामलों में पिता अपनी पैतृक संपत्ति को भी किसी एक विशेष पुत्र को वसीयत कर देते हैं या रजिस्ट्री कर देते हैं और वह हो भी जाती है
लेकिन अगर दूसरा पुत्र इस पर ऑब्जेक्शन करें न्यायालय जाए तो ऐसी संपत्ति की वसीयत या रजिस्ट्री हिंदू विधि की मिताक्षरा प्रथा के अनुसार ऐसी वसीयत या रजिस्ट्री अमान्य होगी और सभी पुत्रों में बराबर बटेगी
नोट 2- अगर पिता अपनी पैतृक संपत्ति को घर में किसी दवाई इलाज के लिए पैतृक संपत्ति बेचता है तो वह बेच सकता है
2. हस्तांतरण के संबंध में संयुक्त परिवार के संयुक्त सदस्य संयुक्त संपत्ति में अपने अंश को तब तक हस्तांतरित नहीं कर सकते जब तक वह अविभक्त या विभाजन नहीं हुए
3.फैक्टम वेल्ट का सिद्धांत- यह सिद्धांत मिताक्षरा पद्धति में सीमित रूप में माना गया है
1.दायभाग - शाखा में पुत्र का पिता की संपत्ति में अधिकार पिता की मृत्यु के बाद उत्पन्न होता है पिता का अपने जीवन काल में संपत्ति पर परम अधिकार होता है पुत्र का उससे कोई संबंध नहीं होता प्रत्येक व्यक्ति का अंश उसकी दाय के रूप में उसके दायदो को प्राप्त होता है उत्तरजीविता का नियम यहां लागू नहीं होता
स्पष्ट शब्दों में जो दाय भाग साखा है वहां पर पुत्र का पिता की पैत्रक संपत्ति में पिता की मृत्यु के बाद ही अधिकार होता है और पिता का अपने जीवन काल में संपत्ति पर पूर्णतया परम अधिकार होता है
और दाय भाग के अनुसार पिता की जो संपत्ति होती है पुत्र को उस संपत्ति पर पिता की मृत्यु के बाद ही उस संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होगा और पिता के जीते जी पुत्र का संपत्ति पर कोई भी किसी प्रकार का अधिकार नहीं होता सिर्फ पिता का अधिकार होता है
2. दाय भाग के अनुसार संयुक्त परिवार का कोई भी सदस्य अविभक्त या बिना विभाजन के संपत्ति में अपने अंश को हस्तांतरित कर सकता है
3. फैक्टम वैलेट का सिद्धांत दाएं भाग में पूर्ण रूप से माना गया है
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