शुक्रवार, 19 मार्च 2021

CPC सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 9 दीवानी मामले क्या होते हैं

दोस्तों इस लेख में CPC सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 9 दीवानी प्रकृति के मामलों के बारे में शार्ट में जानकारी दी गई है




 दीवानी प्रकृति के वाद - दीवानी प्रकृति के वाद से  तात्पर्य ऐसे  वाद से है जिसमें किसी महत्वपूर्ण अधिकार के  प्रवर्तन की मांग की जाती है दीवानी प्रकृति का वाद किसे कहते हैं यह जानने के लिए सीपीसी धारा 9 के स्पष्टीकरण नंबर एक की सहायता लेना जरूरी है इस स्पष्टीकरण में यह बताया गया है कि दीवानी प्रकृति के वाद किसे कहते हैं इस स्पष्टीकरण की भाषा के अनुसार दीवानी प्रकृति का वाद किसे कहते हैं जिसमें संपत्ति संबंधी या पद संबंधी अधिकार प्रतिवादित हैं

स्पष्ट शब्दों में दीवानी प्रकृति का वाद उस वाद को कहते हैं जिसमें संपत्ति संबंधी या पद संबंधी अधिकार संबंधी या अन्य कोई सिविल अधिकार प्रतिवादित है  

ऐसे वाद जो दीवानी प्रकृति के वाद माने गए हैं जैसे

1 पूजा का अधिकार - पूजा करने का अधिकार एक दीवानी अधिकार है और अपने पूजा करने के अधिकार को स्थापित करने के लिए कोई भी वाद लाया जा सकता है ऐसा बाद दीवानी प्रकृति का वाद होगा किसी धार्मिक संस्था में घूमने के लिए व्यक्ति के अधिकार को स्थापित करने का वाद और पूजा के स्थान में घुसने से वादी को रोकने संबंधी वाद दीवानी वाद है

2.  मत देने का अधिकार-  वोट देने का अधिकार एक दीवानी अधिकार है और जब कभी भी इस अधिकार का हनन होता है तो दीवानी वाद लाया जा सकता है.

3. विशिष्ट अनुतोष का अधिकार- विशिष्ट अनुतोष का अधिकार तथा संविदा के विनिर्दिष्ट पालन का अधिकार,
 प्रपत्र के संशोधन संबंधी अधिकार, प्रसंविदा को निरस्त कराने से संबंधित  अधिकार यह दीवानी अधिकार है और ऐसे अनुतोष की प्राप्ति के लिए दीवानी किया जा सकता है

4. क्षतिपूर्ति  का अधिकार- यह भी एक दीवानी प्रकृति का वाद है

5. जन्मतिथि से सुधार संबंधी  वाद -यह भी एक दीवानी प्रकृति का वाद है


लेकिन कुछ वादों को दीवानी वाद नहीं माना गया है सामान्यतः उन वादों को दीवानी प्रकृति का वाद नहीं माना गया है जिसमें मुख्य विचारणीय प्रश्न दीवानी या विविध अधिकार से संबंधित नहीं है वे अधिकार जो किसी व्यक्ति में नागरिक की हैसियत से विहित नहीं है अपितु एक संस्था या समुदाय के सदस्य के रूप में  विहित हैं सामान्यतः दीवानी अधिकार नहीं माने जाएंगे


 उदाहरण स्वरूप- जहां कोई संस्था या समुदाय अपने कुछ आंतरिक उद्देश्यों के लिए अपने लिए या उप नियमों से शासित होती है वहां वे प्रश्न या वे मसले जिनसे संस्था या समुदाय की आंतरिक  स्वायत्तता प्रभावित होती है या उनके सदस्यों के अंतरिक संबंध प्रभावित होते हैं विधिक अधिकार या दायित्व को उत्पन्न नहीं करते
अगर न्यायालय ऐसे प्रश्नों पर विचार करें तो उसका अर्थ यह होगा कि यह संस्था समुदाय के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं और उन प्रश्नों का निर्णय दे रहे हैं जिन पर निर्णय देने का अधिकार केवल संस्था या समुदाय को है 

जैसे- औद्योगिक विवाद अधिनियम से संबंधित वाद

  दोस्तों इस लेख में सीपीसी सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 9 के बारे में शार्ट जानकारी दी गई है






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