शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

आप की जमीन की रजिस्ट्री कैंसिल कब हो सकती है

 दोस्तों इस लेख में आप जानेंगे कि आप की जमीन की रजिस्ट्री कब कैंसिल हो सकती है
जी हां दोस्तों आप की जमीन की रजिस्ट्री थोड़ी सी लापरवाही से रजिस्ट्री कैंसिल हो सकती है तो चलिए जानते हैं





 दोस्तों जैसा कि आपको पता है कि जब भी आप  जमीन खरीदते हैं जमीन की रजिस्ट्री कराते हैं तो वह रजिस्ट्री एक एडवोकेट या एक बैनामा लेखक करता है जब दोनों ही योग्य होते हैं और उन्हें जमीन की रजिस्ट्री के बारे में बहुत अधिक जानकारी होती है फिर भी बहुत सी रजिस्ट्री या 100 में से 5 रजिस्ट्री कैंसिल भी होती है और कई  पर कोई आगे चलकर विवाद खड़ा होता है

यह सब इसलिए होता है कि आपकी कम जानकारी
और जिससे आप रजिस्ट्री कराते हैं वह लालच में आकर आपको  मना नहीं कर पाता 

तो चलिए जानते हैं वह पॉइंट जिनके कारण आप की रजिस्ट्री कैंसिल हो सकती है

1. सबसे पहला पॉइंट यही है कि जो कृषि की जमीन आप खरीद रहे हैं वह संक्रमणीय होनी चाहिए  जैसा कि  जमीन दो प्रकार की होती है एक संक्रमणीय भूमि और एक असंक्रमणीय भूमि  आप असंक्रमणीय भूमि नहीं खरीद सकते अगर गलती से उसकी रजिस्ट्री करा भी लेते हैं तो भविष्य में आपको परेशानी आएगी और वह रजिस्ट्री कैंसिल हो सकती है

और अगर किसी व्यक्ति के पास आसंक्रमणीय भूमि है तो वह 10 साल बाद संक्रमणीय भूमि हो जाती है आप तहसील में दावा करें उसके बाद वह  भूमि जो है फर्द पर खतौनी पर संक्रमणीय भूमि के तौर पर दर्ज हो जाएगी इसके बाद वह जमीन बेची जा सकती है 

इसलिए यदि आप संक्रमणीय भूमि को खरीदते हैं उसकी रजिस्ट्री कराते हैं और रजिस्ट्री के बाद दाखिल खारिज भी करवा लेते हैं तो आपको भविष्य में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा

इसलिए आपको असंक्रमणीय भूमि नहीं खरीदना चाहिए

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 महिलाओं को कृषि भूमि में अधिकार दिए गए हैं

  


दोस्तों इस लेख में आप जानेंगे हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 मे महिलाओं को कौन-कौन से अधिकार दिए गए हैं


 अधिनियम लागू होने के बाद स्त्री को पैतृक अथवा हिन्दू सहदायकी सांपत्ति पर पूर्ण अधिकार प्राप्त हो गए हैं संशोधन अधिनियम 2005 में पुत्र एवं पुत्री को जन्म से   पैतृक  संपत्ति में स्वतंत्र रूप से अधिकार प्रदान किए गए हैं जितना अधिकार एक पुत्र का है उतना ही अधिकार अब एक पुत्री का है 


जानकारी के लिए बता दू - संपत्ति संबंधी अधिकार अधिनियम 1937 की धारा 3 के अंतर्गत स्त्रियों को   सहदायकी संपत्ति पर सीमित प्रदान थे  संपत्ति संबंधी अधिकार अधिनियम 1937 के अनुसार स्त्रियों को जो भी उन्हें  पति की मृत्यु के बाद जो भी उन्हें संपत्ति मिलती थी उन पर उनके सीमित अधिकार ही  प्रदान थे  यानी बह उस  संपत्ति से भरण-पोषण प्राप्त  कर  सकती थी 

लेकिन उस संपत्ति पर पूर्ण अधिकार नहीं थे 


अब  इस संसोधित  अधिनियम  के बाद स्त्रियों को भी यह अधिकार प्रदान किया है कि वह अपने पैतृक संपत्ति अथवा संयुक्त हिंदू परिवार से प्राप्त संपत्ति में ठीक उसी तरह अधिकार रखती है जिस तरह एक पुरुष रखता इसके अनुसार स्त्रियां अब पैतृक संपत्ति अथवा संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति प्राप्त हुई है तो अब उस संपत्ति की पूर्णता स्वामी होंगी 


अब बात करेंगे स्त्रियों के संबंध में असंशोधित अधिकार एवं संशोधित अधिकारों में क्या परिवर्तन हुआ है क्या क्या अंतर आए हैं


हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अंतर्गत कृषि भूमि के संबंध में धारा 4 की उपधारा के अंतर्गत 


1956 के अधिनियम के अंतर्गत कृषि भूमि से संबंधित उत्तराधिकार के संबंध में राज्य स्तरीय नियम कानून लागू होते थे ना कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत  राज्य स्तरीय भूमि  नियम और कानून  पुत्र और पुत्रियों के बीच उत्तराधिकार में समानता उत्पन्न करते सकते  थे लेकिन अब 



हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 के अंतर्गत


 जबकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत भूमि के संबंध में जो भी राज्य स्तरीय भूमि  नियम कानून थे  तथा वह पुत्र पुत्रियों के बीच विभेद असमानता उत्पन्न करते थे उन्हें समाप्त कर दिया गया है और पुत्री एवं पुत्रियों को समान रूप से कृषि भूमि में भी अधिकार देने का प्रावधान किया गया है  


नोट - लेकिन अभी भी कई राज्यों की भूमि विधियां हैं वह पुत्र और पुत्रियों के बीच कृषि भूमि के उत्तराधिकारओं में असमानता कर रही है



हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अंतर्गत मिताक्षरा संयुक्त परिवार संपत्ति धारा 6 के अंतर्गत


पुत्र को संयुक्त हिंदू परिवार अथवा  पैतृक संपत्ति में जन्म से अधिकार था परंतु पुत्रियों को इस संबंध में कोई अधिकार प्राप्त नहीं था लेकिन अब 


 संशोधित उत्तराधिकार अधिनियम 2005  के अंतर्गत पुत्र एवं पुत्री को जन्म से हिंदू परिवार की पैतृक संपत्ति   पर भी अधिकार स्वतंत्र रूप से पुत्र की तरह प्रदान किया गया है 


उत्तराधिकार धारा 30 वसीयत के संबंध में हिंदू उत्तराधिकार 1956 के अंतर्गत- किसी पुरुष को इस बात का पूर्ण अधिकार है कि वह अपनी संपत्ति का अथवा संयुक्त हिंदू परिवार में जो संपत्ति उसे प्राप्त हुई है उसकी वसीयत कर सकता था लेकिन अब 


संशोधन अधिनियम 2005 के अंतर्गत पुरुष के साथ ही साथ स्त्री को भी यह अधिकार प्रदान किया है कि वह अपने पैतृक संपत्ति अथवा संयुक्त हिंदू परिवार से प्राप्त संपत्ति  की वसीयत कर सकती है


यदि आपको जमीन से जुड़ी और भी  जानकारी पढ़नी है  नीचे और भी जानकारियां दी गई है आप उन्हें पढ़ सकते हैं

बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

धारा 143 नहीं तो प्लॉट पर लोन नहीं

   धारा 143 नहीं तो प्लॉट पर लोन नहीं -   पिछले लेख में हम ने धारा 143 के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी थी दोस्तों जानकारी के लिए आपको बता दो की धारा 143 जमीन के उपयोग को चेंज कराने के लिए की जाती है यदि आप किसी की जमीन पर प्लॉटिंग या कोई  अकृषि कार्य करना चाहते हैं तो आपको धारा 143 करवानी पड़ती है


 यदि आप प्लॉट खरीद रहे हैं तो आपको ध्यान देना है कि जहां पर आपने प्लॉट खरीदा है जिस व्यक्ति ने अपनी जमीन पर प्लॉटिंग की है उस जमीन का धारा 143 हुआ है अन्यथा नहीं हुआ है मान लीजिए  उस जमीन का बिना धारा 143 में परिवर्तन कराकर आपको प्लॉट बेच दिया और आपने प्लॉट खरीद लिया तो उस प्लॉट का दाखिल खारिज नहीं हो सकेगा जब प्लॉट का दाखिल खारिज नहीं होगा तब आप उस प्लॉट पर लोन नहीं ले सकते हैं क्योंकि जो भी बैंक आपको प्लॉट पर होम लोन या अन्य प्रकार की कोई लोन देगी तो वहां पर वह प्लॉट का 143 जरूर देखेगी जब तक प्लॉट 143 नहीं होगा तब तक वह प्लॉट आपके नाम दाखिल खारिज नहीं होगा और जब तक वह प्लॉट आपके नाम दाखिल खारिज नहीं होगा तब तक आप उस प्लॉट पर होम लोन या कोई अन्य लोन नहीं ले सकते हैं



शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

संक्रमण और असंक्रमण पट्टा भूमि में अंतर

 इस लेख में आप जानेंगे कि
1. संक्रमणी भूमि और असंक्रामणी  भूमि मे क्या अंतर होता है ?
2.और इस प्रकार की भूमि पर कौन-कौन से अधिकार प्राप्त होते हैं


दोस्तों आपने संक्रमणीय भूमि और असंक्रमणी भूमि के बारे में अक्सर सुना होगा जब भी आप अपनी खेती जमीन की फर्द, खतौनी निकलवाते हैं

 तो अगर वह जमीन आपकी संक्रमणीय है तो वहां फर्द खतौनी पर लिखा होता है संक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधर  

और यदि वह जमीन असंक्रमणी  है तो जब आप उसकी फर्द या खतौनी निकलवा आएंगे तो वहां पर लिखा होता है असंक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधर


 उदाहरण- जैसा कि आप नीचे दी गई फोटो देख सकते हैं यह एक खाता विवरण की अप्रमाणित प्रति है जिसे खतौनी भी बोलते हैं
 यह एक संक्रमणीय भूमि की खतौनी है खतौनी पर आप देख सकते हैं यहां पर लिखा है भूमि जो संक्रमणीय भूमिधर के अधिकार में हो   इस खतौनी से पता चलता है कि इस खाता संख्या की गाटा संख्या  की भूमि जिस व्यक्ति की है वह व्यक्ति उस भूमि पर संक्रमणीय अधिकार रखता है



 संक्रमणीय जमीन पर प्राप्त अधिकार -यदि आपके पास कोई संक्रमणीय जमीन है तो उस पर प्राप्त अधिकार निम्नलिखित होंगें
1.संक्रमणीय भूमि पर आपको खेती करने का अधिकार है 2. संक्रमणीय भूमि  आपके उत्तराधिकारियों में बट सकेगी 3..संक्रमणीय भूमि पर आप लोन भी ले सकते हैं

4.संक्रमणीय भूमि को आप वसीयत ,दान, उपहार  मे दे सकते हैं या उस संक्रमणीय  भूमि को आप बेच भी सकते हैं 
5. संक्रमणी जमीन को धारा 143 में परिवर्तन करा सकते हैं और उस जमीन पर घर अथवा अन्य अकृषि कार्यों के लिए उपयोग भी  कर सकते हैं


असंक्रमणी ज़मीन पर प्राप्त अधिकार- 

संक्रमणीय भूमि की तरह 1 से 3 नंबर तक के सारे अधिकार असंक्रमणीय भूमि धरों को प्राप्त है जैसे-

1.असंक्रमणीय भूमि पर आपको कृषि करने का अधिकार है 2.असंक्रमणीय भूमि  उत्तराधिकारीयों को बाटी जा सकेगी 3.असंक्रमणीय भूमि पर आप लोन भी ले सकते हैं 

4.असंक्रमणीय भूमि को आप नहीं बेच सकते हैं ना ही किसी को दान में दे सकते हैं ना ही किसी को वसीयत कर सकते हैं और ना ही किसी को उपहार में दे सकते हैं

5.असंक्रमणीय भूमि को धारा 143 में परिवर्तन नहीं करवाया जा सकता है और ना हीं उस भूमि को अकृषि कार्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है

नोट-   असंक्रमणी  अधिकार वाले भूमिधर के हितों की सुरक्षा एवं समान अंतरण का अधिकार प्रदान हेतु सरकार ने उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार संशोधन अधिनियम 1995 द्वारा धारा 131क  के पश्चात नई धारा 131ख जोड़ी गई है

जिसमें जोड़ी गई धारा धारा 131ख  के अनुसार असंक्रमणी अधिकार वाले भूमिधर भूमि धारण के 10 वर्ष की समाप्ति के पश्चात संक्रमणी अधिकार वाले भूमिधर  स्वत: समझे जायेगे   

 अगर आपका कोई प्रश्न है तो कमेंट में पूछ सकते हैं  लेख अच्छा लगा हो तो लोगों में शेयर करें



 

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

जमीन की धारा 143 क्या है ?

दोस्तों इस लेख में आप जानेंगे

1. धारा 143 क्या है?
2. धारा 143 किस भूमि की होती है?
3. धारा 143 करवाने के फायदे?

1. धारा 143 क्या है- उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम मे धारा 143 का प्रावधान किया गया है

दोस्तों  सरल भाषा में स्पष्ट शब्दों में धारा 143  जमीन के उपयोग को चेंज करानेे में किया जाता है 

धारा 143 में कृषि भूमि को अकृषि भूमि में बदला जाता है  धारा 143 में चेंज हुई जमीन पर आप प्लॉट,घर मकान, स्कूल ,हॉस्टल, अन्य बिजनेस के उपयोग में ले सकते हैं 
लेकिन आप कृषि भूमि पर प्लॉटिंग घर या अन्य बिजनेस के रूप में कृषि भूमि को आप बिना 143 में परिवर्तन कराए कानूनी रूप से अकृषि कार्यों के लिए प्रयोग नहीं कर सकते हैं 

धारा 143 का प्रावधान इसीलिए किया गया है कि आगर यदि आप अपनी कृषि भूमि पर कोई बिजनेस करना चाहते हैं तो वह जमीन धारा 143 अकृषि भूमि में परिवर्तन करानी पड़ेगी तभी आप उस भूमि को बिजनेस उद्योग अथवा    अकृषि कार्य के  लिए प्रयोग कर सकते हैं

कई स्थानों पर जमीन की धारा 143  नहीं करवाते हैं और वह अपनी खेती की जमीन पर बिना किसी 143 करवा कर उस पर घर, या उस पर प्लॉटिंग या अन्य 
कृषि कार्य करते हैं जो कि कानूनन अवैध है

 धारा 143 किस भूमि की होती है ? 143 के लिए शर्तें

* दोस्तों धारा 143 करवाने के लिए सबसे पहले यह जरूरी है कि वह जमीन आपके नाम होनी चाहिए

* यह भी जरूरी है कि उस जमीन पर आप संक्रमण अधिकार रखने वाले जोतकार हो

* 143  करवाने से पहले आपके  नाम जमीन अधिकतम जोत सीमा साडे 12 एकड़  से अधिक नहीं होनी चाहिए

 143 करवाने के फायदे - दोस्तों जमीन को धारा 143 करवाने सेेेे अधिक फायदे होते हैं इसीलिए अधिकतर लोग जमीन की धारा 143  करवाना चाहते हैं

1. धारा 143 होने वाली जमीन अकृषि भूमि मानी जाती है इसलिए चकबंदी से बाहर हो जाती है 

2. धारा 143 होने के बाद  वह भूमि भू राजस्व  शुल्क से मुक्त हो जाती है

3. धारा 143 वाली मैं परिवर्तन होने वाली जमीन का सर्किल रेट बढ़ जाता है दोस्तों वैसे भी अधिकतर लोग धारा 143 उसी जमीन का करवाते हैं जो रोड के पास या शहर के पास होती है जिसके बेचने पर अच्छे रेट या जो प्लॉटिंग के रूप में कट सके इसके बाद भी धारा 143 वाली जमीन का सर्किल रेट अधिक होता है

4. धारा 143 वाली जमीन अधिकतम जोत सीमा साडे 12 एकड़ में नहीं जुड़ती है दोस्तों जैसा कि आप लोगों को पता होगा कि उत्तर प्रदेश में कोई भी  व्यक्ति के पास साडे 12 एकड़ से अधिकतम कृषि जमीन नहीं हो सकती है
और ना ही कोई व्यक्ति साढे 12 एकड़ से अधिक जमीन खरीद सकता है

लेकिन जो जमीन धारा 143 में परिवर्तन हो गई है वह जमीन साढे 12 एकड़ की अधिकतम जोत सीमा में नहीं जुड़ती है

5. अगर धारा 143 करवा के जमीन में प्लॉटिंग की जाती है और नक्शा बनवाया जाता है तो वहां पर प्लॉट आसानी से दाखिल खारिज हो सकते हैं

बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

जमीन का दाखिल खारिज (म्यूटेशन) नहीं करवाया तो इन परेशानियों का सामना करना पड़ेगा

दोस्तों इस लेख में आप जानेंगे कि अगर आपने जमीन का दाखिल खारिज ना करवाया तो आपको कौन-कौन सी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा
1. चकबंदी से जुड़ी परेशानी -  अगर आपने खेती की जमीन खरीदी है  और उसका दाखिल खारिज नहीं करवाया है और आपके गांव में चकबंदी  हो जाये तो बहुत बड़ी समस्या आएगीी  

क्योंकि आपने जिस खाता संख्या में गाटा संख्या की रजिस्ट्री कराई थी वह गाटा संख्या खाता संख्या से अन्य दूसरा नंबर बन जाता है इसलिए आपको बाद में दाखिल खारिज में बहुत परेशानी आती है इसलिए आप तत्काल  दाखिल खारिज करवाएं


2. उत्तराधिकार संबंधित परेशानी - अगर आपने खरीदी हुई जमीन का दाखिल खारिज नहीं करवाया है तो वह जमीन सरकारी दस्तावेजों में आपके नाम नहीं  होगी  

बल्कि वह जमीन उसी व्यक्ति के नाम बनी रहेगी जिससे आपने जमीन खरीदी थी इस आधार पर जो भी अधिकारी होंगे वह उस जमीन को उसी व्यक्ति के उत्तराधिकारीयों के नाम कर देंगे जिस व्यक्ति के नाम  पहले से ही सरकारी दस्तावेज में है

3. कब्जे से जुड़ी परेशानी - A व्यक्ति ने B व्यक्ति से संपत्ति खरीदी रजिस्ट्री करवाई है यदि उस संपत्ति का A व्यक्ति दाखिल खारिज नहीं करवाता है तो वह संपत्ति B के नाम ही सरकारी रिकॉर्ड में बनी रहेगी

इसलिए जब भी कोई सरकारी दस्तावेज देखेगा तो उस पर B व्यक्ति का नाम ही दर्ज होगा इसलिए हो सकता है कि भविष्य में B व्यक्ति  संपत्ति किसी दूसरे व्यक्ति को दोवारा बेच दे 

4.  लोन संबंधी परेशानियां-  A ने  B से जमीन खरीदी थी और A ने दाखिल खारिज नहीं कर पाई इसलिए वह जमीन सरकारी रिकॉर्ड में B के नाम ही रहेगी  जब वह जमीन सरकारी रिकॉर्ड में B के नाम रहेगी तो हो सकता है B भविष्य में फ्रॉड करके उस उसी सरकारी रिकॉर्ड के आधार पर जमीन पर लोन निकाल ले

अगर दूसरे B व्यक्ति लिए लोन निकाल लिया तो उसके बाद जब आप उस जमीन का जिस पर लोन निकाली गई है दाखिल खारिज करवाएंगे तो आपको वह पूरी लोन चलानी पड़ेगी उसी के बाद दाखिल खारिज होगा

2. दूसरी समस्या यह भी है कि अगर B ने लोन नहीं भी निकाली है तो आप उस जमीन पर तब तक लोन नहीं ले सकते जब तक वह जमीन सरकारी रिकॉर्ड में आपके नाम नहीं आ जाती है


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मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

समय से दाखिल खारिज (म्यूटेशन) न करवाने पर लगेगी लेट पेनल्टी

इस लेख में आप जानेगे अगर समय से दाखिल खारिज नहीं करवाया तो लगभग कितनी लेट पेनल्टी लग सकती है ?


अगर आप कोई  खेती की जमीन खरीदते हैं तो वहां पर दाखिल खारिज अनिवार्य रूप से कराना होता है यदि आप समय से दाखिल खारिज नहीं करवाते हैं तो आप जब भी बाद में दाखिल खारिज करवाएगे तब वहां पर पर अधिकतम लगभग ₹500 प्रति वर्ष के हिसाब से पेनल्टी लग सकती है

इस प्रकार यदि आपने अपनी जमीन रजिस्ट्री के बाद यदि 10 साल बाद उस जमीन का दाखिल खारिज करवाया तो आप पर दाखिल खारिज की लेट पेनल्टी के रूप में अधिकतम लगभग 10 ×500 =5000 रुपए लगेंगे इसके अलावा जो भी व्यक्ति अधिवक्ता या बैनामा लेखक आप का दाखिल खारिज कर आएगा वह आपसे अपनी अलग फीस भी ले सकता है

दोस्तों जब भी आप कृषि जमीन खरीदते हैं तो वहां पर आप अपनी जमीन का दाखिल खारिज अनिवार्य रूप से कराएं वरना और भी  बड़ी परेशानियां आ सकती हैं

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सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

सह संपत्ति पर अधिकार

दोस्तों इस लेख में आप जानेगे

* सह संपत्ति क्या होती है?
* सह संपत्ति पर कौन से अधिकार प्राप्त हैं? 
* संपत्ति के उत्तराधिकारी कौन से होते हैं ?

* सह संपत्ति क्या होती है ?
 वह संपत्ति जो कोई व्यक्ति बिना अपने परिवार की सहायता के बिना परिवार की स्रोत के आय से अपनी खुद की मेहनत, अपनी कमाई से जो संपत्ति बनाता है खरीदता है वह उस व्यक्ति की सह संपत्ति कहलाती है


सह संपत्ति कौन-कौन सी हो सकती है?

सह संपत्ति में हर वह चल अचल संपत्ति है जो किसी व्यक्ति द्वारा अपनी कमाई अपनी मेहनत अपने ज्ञान से कमाई गई है जैसे कार, प्लॉट ,मकान, खेती आदि


 सह संपत्ति पर प्राप्त अधिकार ?
सह संपत्ति पर बहुत अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं जैसे- यदि आपकी कोई सह संपत्ति है तो आप उस संपत्ति को अपनी इच्छा के अनुसार दान दे सकते हैं वसीयत कर सकते हैं किसी को बैनामा करा सकते हैं या उसे बेच सकते हैं 

नोट|- लेकिन आप पैतृक संपत्ति को अपने पुत्र की इच्छा के बिना  वसीयत या दान नहीं हो सकती पैतृक संपत्ति पुत्र के कारण पिता के अधिकार सीमित रहते हैं

 सह संपत्ति के उत्तराधिकारी - अगर  को कोई व्यक्ति अपनी सह संपत्तिि निर्वासित छोड़कर मर जाता  तो वह संपत्ति सभी उत्तराधिकारी में बराबर रूप से बटेगी और उस संपत्ति पर सभी उत्तर अधिकारियों के बराबर हक होंगे


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LLB सभी सेमेस्टर के विषय और ऑप्शनल सब्जेक्ट

 इस लेख में आप जानेगे LLB में सभी सेमेस्टर 1 से 6 तक में कौन-कौन से विषय पड़ेगे और कौन से विषय अनिवार्य है और कौन से ऑप्शनल होते हैं ?


1st semester subject

1. constitutional law first
2. law of contract first
3. Family law (Hindu law) 1
4.  Law of crime IPC
5. Law of tort MVA act

2nd semester subject

1. constitutional law II
2. Law of contract II
3. Family law  2 (Muslim law)
4. Public International law
5. Professional low

3rd semester subject

1. Administrative law
2.Environmental law
3.company law
4.Property law
5.Labor Law

4th semester subject

1.law of evidence
2.law of crime CRPC
3.law of civil procedure code- CPC
4.Labor Law 2nd
5.Alternative dispute resolotion

5th semester subject

1.Jurisprudence law (compulsory)
2.Drafting (compulsory)

3.   1 Land law         optional
      2 Banking Law   optional
      3 Patintright       optional

4. 1 Interpretation of statutes  optional
    2 Human right                     optional
    3 Investment law                 optional

5. 1 Right to information             optional
    2 Law of Eaducation              optional
    3 Bankrupty and insolvency   optional

6 semestet subject

1.Pranciples of tsxation law  compulsory
2.General English and leagal Language "

3. 1 copyright                              optional
    2 Trust Equity fiduciary retation   " "
    3 Information Technology Law    " "

4. 1Trade Mark and Design        optional
    2 International organization    optional
    3 Penology and Victimology   optional

5 1 Insurance law                       optional
   2 Humanitarian and Refugee    " "
   3 Law relation to women          " "
    

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गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

प्लॉट का दाखिल खारिज कब होता है कब नहीं होता है ?

 लेख में आप जानेगे की प्लाट का दाखिल खारिज कब होता है कब नहीं होता है ?

सबसे पहले जानना होगा कि दाखिल खारिज होता क्या है ? और यह कब कराना पड़ता है ?

 जब हम कृषि भूमि या कोई अचल संपत्ति खरीदते हैं तो सबसे पहले उसकी रजिस्ट्री करवाते है और रजिस्ट्री करवाने के बाद उस संपत्ति का स्वामित्व कब्जा खरीदने वाले व्यक्ति को प्राप्त हो जाता है 
लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में सरकारी दस्तावेजों में  तब तक वह संपत्ति उसके नाम दर्ज नहीं होती जब तक की दाखिल खारिज की प्रक्रिया ना हो 

 दाखिल खारिज में जो व्यक्ति संपत्ति बेचता है उसका सरकारी  दस्तावेजों से नाम खारिज करके जो व्यक्ति संपत्ति खरीदता है उसका नाम दाखिल  (दर्ज) कर दिया जाता है और सरकारी अभिलेखों में भी वह संपत्ति का मालिक माना जाता है 
 


 प्लॉट का दाखिल खारिज कब होता है ?

दोस्तों वैसे तो जो जमीन खेती के प्रयोजन से है उसके दाखिल खारिज का प्रावधान उत्तर प्रदेश भूमि विधि की  धारा 34.35 करती है 
अब बात आती है क्या प्लॉट का दाखिल खारिज होता है तो जी हां प्लॉट का दाखिल खारिज होता है 
दोस्तों जैसा कि आपको पता होगा कि जब कोई व्यक्ति अपनी खेती की जमीन में प्लॉटिंग या कोई उद्योग लगाता है तो वह उस जमीन को धारा 143 में परिवर्तन करया जाता है

भूमि अधिनियम धारा 143 के अनुसार कृषि भूमी से अकृषि भूमि में बदली जाती है 

देखिए अगर आपने कोई प्लॉट खरीदा है तो वहां पर अगर प्लॉट वाले मालिक ने अगर अपनी जमीन का धारा 143 में परिवर्तन कराया होगा तो वहां पर आपका प्लॉट आपके नाम दाखिल खारिज  होगा
 
अगर आपको प्लॉट विक्रेता ने अपनी कृषि योग्य जमीन के बिना धारा 143 लागू कराए प्लॉट बेचा है
तो वहां पर आप के प्लॉट का दाखिल खारिज नहीं होगा 
कई बार ऐसा होता है कि लोग अपनी कृषि भूमि को बिना धारा 143 में परिवर्तन कराएं प्लॉट, घर या उद्योग लगा लेते हैं उस स्थिति में वहां पर प्लॉटों का दाखिल खारिज नहीं होता है इसीलिए कई लोगों में भ्रम रहता है कि प्लॉट का दाखिल खारिज नहीं होता है

अगर आपको कंफर्म करना है कि आपके क्षेत्र में प्लॉट का दाखिल खारिज होता है या नहीं तो जो भी आपकी तहसील है वहां पर आप पता कर सकते हैं कि प्लॉट का दाखिल खारिज यहां पर होता है या नहीं होता है

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लाॕकडाउन कर्फयू और धारा 144 मे अन्तर

दोस्तों अपने लॉकडाउन, धारा 144, और कर्फ्यू के बारे में जरूर सुना होगा आज आप जानेंगे लॉकडाउन धारा 144 और कर्फ्यू में क्या अंतर होता है और यह शासन द्वारा कब लगाए जाते हैं 

  लॉकडाउन धारा 144 और कर्फ्यू में अंतर ?

लॉकडाउन जो लगाया जाता है उसका प्रावधान महामारी अधिनियम 1897 के अंतर्गत लॉकडाउन लगाने का प्रावधान किया गया है
 
लॉकडाउन तभी लगाया जा सकता है जब देश में या किसी जगह महामारी फैल रही हो उस समय बचाव करने के लिए महामारी अधिनियम 1897 के अंतर्गत लॉकडाउन लगा दिया जाता है

यह सिर्फ महामारी के दौरान ही लगाया जा सकता है

 लॉक डाउन के दौरान अधिकतर कार्य और  ऑफिस संबंधित कार्य अपने घर बैठ कर ही ऑनलाइन या अन्य माध्यम से करने होते हैं और अपने घर पर ही रहना होता है
लॉकडाउन में कौन सी सुविधाएं बंद की जाती है
लॉकडाउन में कई सुविधाएं बंद कर दी जाती है जैसे बस सुविधा, ट्रेन सुविधा, एरोप्लेन सुविधा या ,सिनेमा हॉल वह स्थल जहां पर संक्रमण फैलने का खतरा होता है ऐसे सारे कार्य बंद कर दिए जाते हैं

धारा 144 - धारा 144 उन स्थानों पर लगाई जाती हैैै जहां पर दंगाा,कोई सांप्रदायिक विवाद या जनता में आक्रोश,अन्यय विवाद की स्थिति पैदा होती है वहां पर धारा 144 लगाई जाती है 

अगर क्षेत्रीय मजिस्ट्रेट को यह लगता है कि हां पर हालात काबू में नहीं है और अगर वह उचित समझता है तो मजिस्ट्रेट के आदेश पर वहां पर धारा 144 लगाई जा सकती है
धारा 144 लागू होने पर एक स्थान पर 5 से अधिक व्यक्ति एकत्रित नहीं हो सकते अगर वह एकत्रित होते तो उन पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है

धारा 144 में कौन-कौन सी सुविधाएं बंद रहती है ?

 जिस स्थान पर धारा 144 लगी होती है वहां पर 5 लोगों से अधिक लोगों का एक स्थान पर एकत्रित होना मना होता है अन्य सारी सुविधाएं सुचारु रुप से चालू रहती है जैसे सिनेमा हॉल है  इंटरनेट सुविधा,मार्केट, है बस यात्रा, रेल यात्रा अन्य सुविधाएं


 कर्फ्यू क्या होता है ?

दोस्तों कर्फ्यू धारा 144 का  बड़ा रूप होता है अगर किसी क्षेत्र में थोड़ा बहुत विवाद या मामूली दंगा हुआ है जहां हालात काबूू में पाए जा सकते हैं वहां धारा 144 लगा  दी जाती है

अगर किसी स्थान पर बड़ा दंगा होता है या अधिक बड़ा विवाद है धारा 144 से उसे कंट्रोल नहीं किया जा सकता है तो उस जगह पर कर्फ्यू लगा दिया जाता है

और कर्फ्यू के दौरान लोगों को कुछ घंटों के लिए कुछ समय के लिए घर में अंदर रहने के लिए बाध्य जाता है  

कर्फ्यू में कौन सी सुविधाएं बंद रहती हैं
कर्फ्यू के दौरान अधिकतर सुविधाएं बंद रहती है जैसे इंटरनेट सुविधा, अगर मामला गंभीर है तो यातायात सुविधा ,सिनेमा हॉल स्थानीय बाजार मार्केट,  सभी प्रकार की सुविधाएं भी बंद रहती है
 सिर्फ उन्हीं रोजमर्रा जरूरी सुविधाओं को खुला रखा जाता है जैसे चिकित्सक संबंधी या खाने पीने के सामान यह शव यात्रा

जमीन की रजिस्ट्री (बैनामा)कराने में कितना पैसा खर्च होगा?

 लेख में आप जानेंगे 

1. जमीन की रजिस्ट्री में लगभग कितने पैसों के          स्टांप लगते है ?


दोस्तों जब भी आप कोई जमीन खरीदते हैं तो वहां पर सबसे पहले जमीन  कहां पर है यह देखा जाता है यदि आप की जमीन किसी शहर में किसी रोड के पास है तो उसका सर्किल रेट अधिक होता है

और यदि आप की जमीन गांव में है तो वहां पर सर्किल रेट कम होता है

आप की जमीन के सर्किल रेट का  लगभग  5 परसेंट पैसों की स्टांप लगते हैं 

अगर आप की जमीन शहर में है तो यह लगभग  7% पैसों की स्टांप लग सकते हैं

  उदाहरण - यदि आपका कोई  जमीन गांव में है और उसका सर्किल रेट ₹100,000 है  तो उस पर लगने वाले स्टांप की कीमत लगभग 5% = 5000  होगी 

2. यदि आपकी कोई जमीन शहर में है और उसका सर्किल रेट 100,000  है तो उसके सर्किल रेट का 7% यानी 7000  रुपए की कीमत के स्टांप लगेंगे


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