शनिवार, 31 जुलाई 2021

whate is mutation दाखिल खारिज क्या है

दाखिल खारिज क्या है ?

 शाब्दिक रूप से , शब्द " दाखिल खारिज करना ' का तात्पर्य " परिवर्तन करने से है । जब काश्तकार की ओर से मृत्यु , उत्तराधिकार या अन्तरण के कारण राजस्व अभिलेखों में विद्यमान प्रवृत्तियाँ त्रुटिपूर्ण या व्यर्थ हो जाती हैं , तब कलेक्टर से उन्हें शुद्ध करने की अपेक्षा की जाती है , जिससे भू - राजस्व से अबाध प्रवाह को सुगम बनाया जा सके । ऐसा शुद्धीकरण या तो उत्तराधिकार या अन्तरण के आधार पर कब्जा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की रिपोर्ट पर या राजस्व प्राधिकारियों के ज्ञान में अन्यथा आने वाले तथ्यों के आधार पर किये जाते हैं । हिन्दी का समान शब्द दाखिल खारिज भी वही विचार व्यक्त करता है , क्योंकि किसी के नाम का विलोपन किया जाता है और अन्य व्यक्ति के नाम को प्रविष्ट किया जाता है । इस प्रकार , दाखिल खारिज एक विधिक प्रक्रिया है , जिसके माध्यम से अधिकार अभिलेख में प्रविष्टियाँ उत्तराधिकार या अन्तरण के आधार पर परिवर्तित की जाती हैं । जब राजस्व अभिलेखों को उ.प्र.राजस्व संहिता की धारा 32 या धारा 38 के अधीन शुद्ध किये जाने की अपेक्षा की जाती है , तब ऐसा परिवर्तन भी उक्त संहिता के अध्याय 5 के प्रयोजनों के लिए शब्द " दाखिल खारिज " द्वारा ही आच्छादित माना जाता है । दाखिल खारिज और शुद्धीकरण के बीच पर्याप्त अन्तर है । प्रत्येक दाखिल खारिज शुद्धीकरण की परिधि में आता है , किन्तु प्रत्येक शुद्धीकरण को दाखिल खारिज की संज्ञा प्रदान नहीं की जा सकती है

बुधवार, 28 जुलाई 2021

वसीयत की रजिस्ट्री किया जाना अनिवार्य है

इस लेख में वसीयत से जुड़ी बहुत ही महत्वपूर्ण बात करेंगे  वसीयत की रजिस्ट्री कराना अनिवार्य है या नहीं अगर आप वसीयत करवाते हैं तो आपको रजिस्ट्री करवाना चाहिए या नहीं करवाना चाहिए और यदि आप रजिस्ट्री नहीं करवाते हैं तो आगे क्या होगा क्या आप की वसीयत अमान्य होगी

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के अनुसार वसीयत का रजिस्ट्रीकरण जरूरी नहीं है. पर इसके कारण कई लोग इस सुविधा का दुरुपयोग करते हैं और उनके द्वारा किया जा रहा था और यह प्रावधान किया गया कि जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 169 में निर्दिष्ट सभी वसीयतो  को आवश्यक रूप से रजिस्ट्री किया जाएगा
 इसके बाद जब उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता UPRC 2006 कानून बना था उसमें भी  धारा 107 में भी यह जारी रखा गया अतः वहां पर प्रावधान किया गया है यह स्पष्ट निर्विवादित रूप से कहां जा सकता है की  भूमि का स्वामी के संबंध में प्रत्येक वसीयत रजिस्ट्री की जानी चाहिए और गैर रजिस्ट्री कृत वसीयत अवैध अर्थातअमान्य गैरकानूनी होगी

यदि राजस्व अधिकारी रजिस्ट्री कृत वसीयत के आधार पर दाखिल खारिज मंजूर करता है तो उसका आदेश न केवल शून्य होगा बल्कि वह विभागीय कार्रवाई के अधीन भी हो सकता है

अतः स्पष्ट शब्दों में कह सकते हैं कि आप कभी भी वसीयत कर आते हैं तो बिना रजिस्ट्री किए वसीयत ना कराएं वरना उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 107 उप धारा 3 का उल्लंघन होगा और ऐसी वसीयत  अमान्य मानी जाएगी

अजय प्रकाश दीक्षित बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2004(96)आर.डी.298 : 2004
ए डब्ल्यू सी 11718 ‍‍(एच.सी)

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

General power of attorney आम मुख्तारनामा Special power of attorney खास मुख्तारनामा नामा

इस लेख में आप जानेंगे पावर ऑफ अटॉर्नी  मुख्तारनामा क्या होती है और यह कितने प्रकार की होती है आपको उसकी जरूरत कब पड़ती है कब आपको पावर ऑफ अटॉर्नी करवानी चाहिए और कब पावर अटॉर्नी कैंसिल की जा सकती है
 पहले आपको बता दें कि पावर ऑफ अटॉर्नी को मुख्तारनामा भी कहते हैं पावर ऑफ अटॉर्नी 1882 sec 1 कहता है कि पावर ऑफ अटॉर्नी instrument वह लेख पत्र है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कोई भी कार्य करने के लिए दूसरे व्यक्ति को अधिकार दे सकता है 

पावर ऑफ अटॉर्नी 1882 का सेक्शन 2 यह कहता है कि अगर कोई भी व्यक्ति जिसे प्रतिनिधि बनाया गया है वह कोई भी कार्य करता है तो ऐसा माना जाएगा कि वह उसी व्यक्ति द्वारा कार्य किया गया है जो संपत्ति का असली स्वामी है

- पावर ऑफ अटॉर्नी वह व्यक्ति दे सकता है- जो संपत्ति का वास्तविक स्वामी हो जो वयस्क हो जो मानसिक रूप से स्वस्थ हो वह व्यक्ति पावर ऑफ अटॉर्नी दे सकता है

पावर ऑफ अटॉर्नी किसकी फेवर में दी जा सकती है- पावर ऑफ अटॉर्नी ऐसे व्यक्ति की फेवर में दी जा सकती है जो व्यस्क हो जो दिमाग से स्वस्थ हो जो कोर्ट से अयोग्य घोषित न किया गया हो

पावर ऑफ अटॉर्नी कब दी जा सकती है कोई भी संपत्ति का स्वामी अगर वह व्यक्ति विदेश में रहता है या अपनी संपत्ति से दूर रहता है जहां उसे आने जाने में कानूनी कार्रवाई न्यायालय कार्रवाई के लिए आने में दिक्कत होती है या कोई ऐसा स्वामी जो वृद्धा अवस्था में है या कोई ऐसा स्वामी जो बीमार है वह व्यक्ति किसी को भी जिस पर वह विश्वास करें उसे पावर ऑफ अटॉर्नी उसके फेवर में दे सकता है
अगर कोई बड़ा बिजनेसमैन है जिसे अपनी संपत्ति की कानूनी कार्रवाई या न्यायालय कार्रवाई करने के लिए समय नहीं मिलता वह व्यक्ति भी दूसरी किसी व्यक्ति को पावर ऑफ अटॉर्नी दे सकता है

पावर ऑफ अटॉर्नी के प्रकार-

 General power of attorney आम मुख्तारनामा
 Special power of attorney खास  मुख्तारनामा

जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी यह उस कंडीशन में दी जाती है जब किसी व्यक्ति को कई अधिकार दिए जाते हैं जैसे संपत्ति बेचने का अधिकार कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार उसको 143 में परिवर्तन कराने का अधिकार तो ऐसी स्थिति में जनरल पावर अटॉर्नी की जाती है

स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी - स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी के अनुसार किसी एक विशेष अधिकार के लिए किसी व्यक्ति को प्रतिनिधि के रूप में चुना जाता है जैसे सिर्फ और सिर्फ कानूनी कार्रवाई करने के अधिकार स्पेशल पावर करने में अन्य अधिकार नहीं मिलते

पावर ऑफ अटॉर्नी कब कैंसिल की जा सकती ह

सबसे पहले पावर ऑफ अटॉर्नी अगर आप कैंसिल करवाना चाहते हैं तो कैंसिल की जा सकती है पावर ऑफ अटॉर्नी कैंसिल कराने के लिए आपको उस व्यक्ति को नोटिस देना होगा जिस व्यक्ति को आपने पावर ऑफ अटॉर्नी की थ

यदि आपने पावर ऑफ अटॉर्नी की रजिस्ट्री करवाई है तो आप रजिस्ट्री ऑफिस में भी आप एप्लीकेशन दे सकते हैं उसमें मेंशन कर सकते हैं कि इस व्यक्ति को पावर ऑफ अटॉर्नी खारिज की जाती है या आप सार्वजनिक किसी अखबार में यह बात करवा सकते हैं कि इस व्यक्ति को दी गई पावर ऑफ अटॉर्नी कैंसिल की जाती है

पावर ऑफ अटॉर्नी कब कैंसिल हो जाती है कब निरस्त हो जाती है

1. यदि संपत्ति के असली मालिक की मृत्यु हो जाए उस कंडीशन में या जिस व्यक्ति को पावर ऑफ अटॉर्नी दी है उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाए उस कंडीशन में या जिस कार्य के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी की थी वह कार्य पूरा हो जाने पर पावर ऑफ अटॉर्नी निरस्त हो जाती है

यदि किसी निश्चित समय तक के लिए थी तो उस समय होने के बाद पावर ऑफ अटॉर्नी कैंसिल हो जाती है





रविवार, 18 जुलाई 2021

दंड प्रक्रिया की संहिता धारा 43

इस लेख में आप जानेंगे दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 43 के बारे में जैसा कि आप लोगों को सभी लोगों को पता होगा कि जब भी कोई अपराधी जब भी कोई व्यक्ति अपराध करता है तो ऐसी स्थिति में पुलिस को उस व्यक्ति को जिसने अपराध किया है उसे गिरफ्तार करने का अधिकार होता है और पुलिस ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेती है

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण आप जान ले कि सीआरपीसी भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 43  प्रावधान करती है कि आम व्यक्तियों को भी संज्ञेय गंभीर अपराध करने वाले व्यक्ति अपराधी की गिरफ्तारी करने का अधिकार है और ऐसे व्यक्ति को अपराधी को गिरफ्तार करके पुलिस को सौंप सकती है तो आज दोस्तों आज इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे सीआरपीसी 43 के प्रावधानों के बारे में

CrPC 43 - प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी और ऐसी गिरफ्तारी पर प्रक्रिया- कोई प्राइवेट व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को जो उसकी उपस्थिति में उसके सामने अजमानतीय  संज्ञेय गंभीर किस्म का अपराध करता है या किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जिस पर इनाम या जिसे अपराधी घोषित कर दिया गया है ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है और ऐसे गिरफ्तार किए व्यक्ति को बिना अनावश्यक देरी के पुलिस अधिकारी के हवाले कर सकता है या निकटतम पुलिस थाने मैं भिजवा सकता Ko

गिरफ्तार किया गया ऐसा व्यक्ति जो पुलिस अधिकारी के पास है थाने में ले जाया जाएगा तब पुलिस अधिकारी उस व्यक्ति को स्वयं गिरफ्तार करेगा परंतु यह गिरफ्तारी तब होगी जब उसके पास यह विश्वास करने के कारण हो कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है यह गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति ने कोई असंज्ञेय अपराध किया है और पूछने पर वह अपना नाम व पता नहीं बताता है तो ऐसी अवस्था में उस अधिकारी को जब तक उसका नाम व पता सही नहीं मिल जाता है उसे गिरफ्तार करने का अधिकार होगा लेकिन अगर उसने कोई अपराध नहीं किया है तो उसे तुरंत शीघ्र ही छोड़ दिया जाएगा



शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

CRPC 151

आज के लेख में बात करेंगे Crpc दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के प्रावधानों के बारे में


जैसा कि आपने कई बार देखा होगा कि जब भी दो पक्ष आपस में लड़ते हैं या कहीं भी मारपीट होती है तो अगर कोई पुलिस को फोन करता है तो पुलिस आकर उन दोनों पक्ष को या उन दोनों व्यक्तियों को जो आपस में लड़ रहे थे उन्हें गिरफ्तार कर लेती है चाहे वह लड़ाई मामूली ही क्यों ना हो क्या आपने कभी सोचा है कि यह अधिकार पुलिस को कहां से मिलता है और पुलिस क्यों गिरफ्तार कर लेती है क्या यह अवैध है वही इस लेख में जानेंगे


Crpc151 के प्रावधान - संज्ञेय अपराधों को रोकने के लिए गिरफ्तारी सीआरपीसी 151 है प्रावधान करती है कि कोई पुलिस अधिकारी जिसे किसी संज्ञेय एक गंभीर अपराध होने की संभावना परिकल्पना का पता चलता है तो ऐसी स्थिति में जो व्यक्ति गंभीर अपराध करने वाला है उसे मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है
जिससे संज्ञेय गंभीर अपराधों को होने से रोका जा सके यहां पर संज्ञेय अपराधों का मतलब ऐसे अपराधों से हैं जो गंभीर किस्म के अपराध हैं और जिन्हें करने पर 3 वर्ष या 3 वर्ष से अधिक का कारावास हो सकता है वह संघीय अपराध कहलाते हैं ऐसी स्थिति में पुलिस को यह अधिकार है इस संधि अपराध करने वाले को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है संघीय अपराध में गिरफ्तार बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार पुलिस को इसलिए है क्योंकि अगर पुलिस किसी मजिस्ट्रेट से आदेश ले गई तब तक वह क्राइम हो चुका होगा इसलिए ऐसे अपराधों को रोकने के लिए बिना वारंट के भी पुलिस गिरफ्तार कर सकती है

इस धारा के अधीन गिरफ्तार व्यक्तियों को उसकी गिरफ्तारी के समय से 24 घंटे की अवधि से अधिक उसे गिरफ्तार करके नहीं रखा जा सकता है 24 घंटे के भीतर उस व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और गिरफ्तारी के तत्काल बाद उसकी गिरफ्तारी के आधारों को बतलाया जाएगा

महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कई बार इस धारा के अधीन गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों को अगर मामूली विवाद था या उसने कोई अपराध नहीं कर पाया है और किसी ने शिकायत नहीं की है तो ऐसी स्थिति में ऐसे व्यक्ति को पुलिस कुछ देर तक थाने में बंद रखती है उसके बाद छोड़ दिया जाता है जैसी कई बार आपने देखा होगा कि चुनाव के समय कई लोगों को कुछ देर के लिए गिरफ्तार कर लिया जाता है और कुछ देर पश्चात है उतना खत्म होने के पश्चात आना छोड़ दिया जाता है



लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है किस धारा का उपयोग पुलिस द्वारा कभी-कभी गलत रूप से भी किया जाता है कई बार पुलिस छोटे-छोटे मामलों में भी पैसों के लिए व्यक्तियों को गिरफ्तार करती है और पैसे लिए जाने के बाद उन्हें छोड़ देती है कई बार आपने देखा होगा कि दो लोग आपस में बहस भी कर रहे हैं और किसी ने 100 नंबर पर कॉल कर दी पुलिस आगे उन दोनों लोगों को गिरफ्तार कर लेती है और सर कुछ पैसे लेकर उन्हें वापस से छोड़ देती है जो कि बिल्कुल गलत है जबकि है धारा सिर्फ और सिर्फ गंभीर अपराधों को करने से रोकने के लिए प्रधान करती है जिससे समाज में गंभीर संघीय अपराध होने से रोका जा सके


बुधवार, 7 जुलाई 2021

IPC 293 बच्चों बालकों को अश्लील वस्तुओं का विक्रय करने पर दंड

इस लेख में आप जानेंगे भारतीय दंड संहिता की धारा 293 के बारे में 20 वर्ष से नीचे के लड़कों लड़कियों आदि व्यक्ति को अश्लील वस्तुओं का विक्रय  करना ऐसा करने पर कितने वर्ष के दंड का प्रावधान है

भारतीय दंड संहिता 293 के प्रावधान

इस धारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति 20 वर्ष से कम आय के किसी भी व्यक्ति को अश्लील वस्तु जैसे- अश्लील पुस्तक पुस्तिका ,कागज पर बने चित्र ,फोटो, अश्लील वस्तु अश्लील वीडियो जैसे ब्लू फिल्म आपको यदि बेचता है या भाड़े पर देता है या उन्हें वितरण करेगा या उन्हें दिखाएगा या उन्हें देने और दिखाने का प्रयत्न करेगा अगर वह ऐसा पहली बार करता है तो वह किसी भांति के कारावास जिसकी अवधि 3 वर्ष तक की हो सकती है से दंडनीय होगा 
अगर वह ऐसा कार्य द्वारा करते हुए पकड़ा गया तो ऐसी स्थिति में वह दोनों भात के कारावास जिसकी अवधि 7 वर्ष तक की जुर्माने से दंडनीय होगा

उदाहरण 1- यदि कोई कंप्यूटर आज वाला 20 वर्ष के कम आयु के व्यक्ति को अश्लील फोटो अश्लील वीडियो देता है या दिखाता है या उनके मेमोरी कार्ड में डालता है या उन्हें कोई अश्लील पुस्तक पढ़ने के लिए देता है तो ऐसी कंडीशन में वह इस धारा के अधीन दोषी होगा और वह 3 वर्ष के कारावास के दंड नहीं हो सकता है

उदाहरण 2- अगर कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को जो 20 वर्ष से नीचे है उसे अपने जननांग दिखाता है या उन्हें अश्लील बातें सुनाता है तो ऐसी कंडीशन में वह इस धारा के अधीन दोषी होगा

इस धारा का मकसद समाज में अश्लीलता को कम करने के लिए और जो अथवा बच्चों को जो नासमझ है उन्हें ऐसे कार्यों से दूर रखने के लिए समाज को अच्छा बनाने के लिए जो 20 वर्ष से कम आयु के लोग हैं जैसे बच्चे लड़के लड़कियां अथवा जो भी 20 वर्ष से नीचे है उनमें ऐसी अश्लीलता ओं को बढ़ने से रोकने के लिए इस धारा का होना बहुत जरूरी है अगर कोई भी व्यक्ति आपके बच्चे को या जो व्यक्ति 20 वर्ष से कम है उसे अश्लील चित्र अश्लील बात अश्लील गालियां अश्लील पुस्तक देता है या उन्हें अश्लीलता सिखाता है या अश्लील कार्य सिखाता है तो ऐसी कंडीशन में वह एक अपराध है जो समाज में समाज को बिगाड़ना चाहते हैं और जो भी आपके बच्चे हैं उन्हें बिगाड़ना चाहते हैं उन्हें गलत चीज सिखना चाहते हैं तो अगर कोई भी व्यक्ति ऐसा करता है तो आप  बिना हिचकिचाहट पुलिस को बता सकते हैं पुलिस से उसकी शिकायत कर सकते हैं जिससे ऐसे लोगों पर कार्रवाई हो सके और उन्हें सलाखों के पीछे किया जाए



शनिवार, 3 जुलाई 2021

ध्वनि प्रदूषण IPC 268 अगर कोई तेज आवाज में गाना बजाता है तो कैसे सबक स‌िखाएं

आज के लेख में आप जानेंगे अगर कोई व्यक्ति आपके घर के पास तेज आवाज में लाउडस्पीकर डीजे या पटाखे फोड़त है और या आपके घर के पास मैरिज होम है जहां पर रोज आपको परेशानी होती है उसके तेज गानों की आवाज से आपको उससे परेशानी हो रही है तो आप उसे कैसे सबक सिखा सकते हैं। 



सबसे पहले आप यह जान लीजिए कि ध्वनि प्रदूषण फैलाना आईपीसी की धारा 268 लोक न्यूसेंस सार्वजनिक जगह पर ध्वनि प्रदूषण फैलाना कानूनन अपराध है और आईपीसी की धारा 290 और 291 में ध्वनि प्रदूषण फैलाने पर इसके लिए जुर्माना और 6 महीने के कारावास की सजा का प्रावधान भी है it

ध्वनि प्रदूषण विनियमन और नियंत्रण 2000 के अंतर्गत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सीपीसीबी ने चार अलग-अलग प्रकार के चित्रों में ध्वनि मानक दंड रखा है डेसिबल वह ईकाई है जिसमें ध्वनि की तीव्रता मापी जाती है.जैसा कि आप नीचे देख सकते हैं 

लेकिन आप सामान्य तौर पर समझ लीजिए कि अगर कोई भी व्यक्ति आपके घर के पास अधिक तेज आवाज में लाउड स्पीकर साउंड किसी भी प्रकार का ध्वनि प्रदूषण करता है जिससे वहां के लोगों को या आपको दिक्कत होती है या आपके घर के पास कोई मैरिज होम है जहां पर प्रतिदिन शादी समारोह में अत्यधिक डीजे साउंड का और ध्वनि प्रदूषण होता है। तो यह अपराध की श्रेणी में आता है और आप पुलिस को कॉल करके इसकी सूचना दे सकते हैं

अगर पुलिस इस पर कार्रवाई नहीं करती है तो आप वहां के मजिस्ट्रेट को ध्वनि प्रदूषण की सूचना या शिकायत पत्र दे सकते हैं उसे लगता है कि किसी के लाउडस्पीकर बजाने से पब्लिक न्यूसेंस पैदा होता है, तो वो उसे हटाने का आदेश दे सकता है. दण्ड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी की धारा 133 मजिस्ट्रेट को ऐसा आदेश देने का शक्ति देती है. अगर कोई व्यक्ति मजिस्ट्रेट के आदेश को नहीं मानता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.

इसके बाद भी आप सामान्य भाषा में समझ लीजिए अगर आपके घर के पास रात 10:00 से 11:00 बजे के बाद अगर कोई तेज आवाज में गाना बजाता है ध्वनि प्रदूषण करता है या मैरिज होम पास में है वहां पर 10:00 से 11:00 बजे के बाद अधिक शोर होता है तो आप पुलिस को तत्काल सूचना दे सकते हैं क्योंकि आपको पता होना चाहिए ध्वनि प्रदूषण के आपके अधिकारों का हनन होता है क्योंकि आपको परेशानी होती है आपको मानसिक रूप से परेशानी होती है क्योंकि संविधान का अनुच्च्द 21 में प्रत्येक नागरिक को बेहतर वातावरण और शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है. और अधिक ध्वनि प्रदूषण लोगों में समस्याएं और उन्हें परेशानी पहुंचाता है

ध्वनि प्रदूषण फैलाने पर दंड प्रावधान

आईपीसी की धारा 290 जो कोई व्यक्ति लोक न्यूसेंस ध्वनि प्रदूषण करेगा  वह जुर्माने से जो ₹200 तक का हो सकेगा से दंडित किया जाएगा या 

आईपीसी की धारा 291 के अनुसार ध्वनि प्रदूषण बंद करने के आदेश के बाद भी अगर कोई व्यक्ति ध्वनि प्रदूषण करता है ध्वनि प्रदूषण चालू रखता है तो वह या दोबारा से ध्वनि प्रदूषण करता है तो वह सादा कारावास जिसकी अवधि 6 महीने या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है


ध्वनि प्रदूषण के मापदंड

अगर इसके क़ानून की बात करें तो ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) 2000 के अंतर्गत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने चार अलग-अलग प्रकार के क्षेत्रों के लिए ध्वनि मानदंड रखा है

औद्यगिक क्षेत्र  75 डेसिबल दिन के समय और रात में 70 डेसिबल

वाणिज्यिक क्षेत्र 65 डेसिबल दिन के समय और रात में 55 डेसिबल

आवासीय क्षेत्र  55 डेसिबल दिन में और 45 डेसिबल रात में

साइलेंस ज़ोन 50 डेसिबल दिन में और 40 डेसिबल रात में


भरतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1) ए और अनुच्छेद 21 में प्रत्येक नागरिक को बेहतर वातावरण और शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है. पीए जैकब बनाम कोट्टायम पुलिस अधीक्षक मामले में केरल हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि संविधान में 19(1) ए के तहत दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी भी नागरिक को तेज़ आवाज़ में लाउड स्पीकर और शोर करने वाले उपकरण बजाने की इजाज़त नहीं देता है






UPPSC POSTS

upsssc lower pcs ka exsam karvati hai

UPPSC  PCS  la exsam KRVATA HAI 

सब रजिस्ट्रार, असिस्टेंट प्रॉसीक्यूटिंग ऑफिसर (ट्रांसपोर्ट)
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, जिला प्रशासनिक अधिकारी, एसोसिएट डीआईओएस व अन्य पद
जिला लेखा अधिकारी (राजस्व)
असिस्टेंट कंट्रोलर लीगल मेजरमेंट (ग्रेड- 1 व 2)
असिस्टेंट लेबल कमिश्नर
डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम ऑफिसर
सीनयिर लेक्चरर (DIET
डिस्ट्रिक्ट प्रोबेशन ऑफिसर
चाइल्ड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट ऑफिसर
फूड सेफ्टी ऑफिसर / डेजिग्नेटेड ऑफिसर
स्टैटिस्टिकल ऑफिसर
असिस्टेंट डायरेक्टर (हॉर्टीकल्चर)
मैनेजर (एडमिनिस्ट्रेशन / जेनरल)
असिस्टेंट स्टोर पर्चेज ऑफिसर
टेक्निकल असिस्टेंट (केमिस्ट्री

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

SC. ST की जमीन कैसे खरीदें UPRC 98 अनुसूचित जाति के भूमिधरो द्वारा अंतरण पर प्रतिबंध

आज के लेख में आप जानेंगे कि आप sc st कास्ट के लोगों की जमीन कैसे खरीद सकते हैं और साथ में जानेंगे कि कब  sc st  की जमीन नहीं खरीद सकते हैं

जैसा कि दोस्तों उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 98 अनुसूचित जाति के भूमिधरो द्वारा अंतरण पर भूमि बेचने पर प्रतिबंध लगाती है धारा 98 के अनुसार कुछ नियम और शर्तें दी गई है उनको पूरा करके ही आप अनुसूचित जाति के लोगों की जमीन खरीद सकते हैं तो चलिए उन शर्तों के बारे में जान लेते हैं

1. सबसे पहले आप यह जान लीजिए कि अनुसूचित जाति का कोई भी व्यक्ति को कलेक्टर की लिखित पूर्व अनुज्ञा के बिना कोई भूमि किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति से अलग व्यक्ति को विक्रय ,दान, बंधक ,या पट्टा ,द्वारा अंतरित करने का अधिकार नहीं होगा

लेकिन कलेक्टर द्वारा भी लिखित अनुज्ञा तभी दी जाएगी जब वह धारा 98 में बताई गई शर्तों को पूरा कर रहा हो अथवा जो धारा 98 में नियम है जो शर्ते हैं उनको आवश्यक किया जाना है जरूरी है तभी कलेक्टर द्वारा अनुज्ञा या परमिशन दी जा सकेगी

. अनुसूचित जाति के भूमिधर के पास धारा 108 की उप धारा (2) के खंड का अथवा धारा 110 के खंड (क) जैसी भी स्थिति हो उसका कोई जीवित उत्तराधिकारी नहीं होना चाहिए ऐसी कंडीशन में जब उसका कोई जीवित उत्तराधिकारी नहीं होगा तब वह अपनी जमीन को sc.st के अदर कास्ट के व्यक्ति को जमीन कलेक्टर की अनुमति के बाद बेच सकता है see

. यह नियम बहुत ही अच्छा है  जो लोग आसानी से पूरी कर सकते हैं और वह आसानी से जमीन बेच सकते हैं इस शर्त के अनुसार अनुसूचित जाति का व्यक्ति जिस जिले में उसकी जमीन पड़ी है या जिस जिले में उसे अपनी जमीन बेचनी है वह व्यक्ति उस जिले से भिन्न अलग किसी जिले में या वह किसी अन्य राज्य में नौकरी कर रहा है अथवा कि व्यापार कर रहा है उसका कोई व्यवसाय है लगातार वह उस जिले से बाहर दूसरे जिले या दूसरे राज्य में रह रहा है नियमित रूप से वहां पर बस चुका है तो ऐसी स्थिति में वह अपनी जमीन कलेक्टर की आज्ञा के बाद एससी एसटी से अन्य व्यक्ति को बेच सकता है वहां पर उसको कोई भी किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं आएगी और जमीन आसानी से बेची जा सकती है और कलेक्टर की परमिशन भी वहां पर आसानी से मिल जाती है

. कलेक्टर को यह समाधान हो गया है कि वित्त कारणों से भूमि के अंतरण की अनुज्ञा देना आवश्यक है यहां पर आज्ञ देना जरूरी है तो कलेक्टर को यह अधिकार है कि वह वहां पर ऐसी भूमी बेचने के लिए आज्ञा दे सकते हैं

इसमें महत्वपूर्ण बात इस धारा के महत्वपूर्ण बात यह है कि अनुमति प्रदान करने के लिए कलेक्टर द्वारा ऐसी जांच की जा सकती है जो भी आप कारण बताते हैं कलेक्टर उनकी जांच कर सकता है और उसके बाद आपको भूमि अंतरण करने की लिखित आज्ञा दे सकते हैं

इसके अलावा भी कई कारण होने पर कोई sc-st व्यक्ति अपनी जमीन अदर कास्ट को बेच सकता है जैसे बेटी की शादी के लिए धन की आवश्यकता पड़ने पर भी अपनी जमीन sc-st से अन्य व्यक्ति को बेची जा सकती है ( इंद्रजीत बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सचिव राजस्व सिविल सचिवालय लखनऊ के माध्यम से एवं एक अन्य RD 2019
(142)3:2019RNP88( ALL HC ,LB)

अनुमति की मंजूरी धारा 99 के खंड 8 का विश्लेषण इंगित करता है कि जब एक बार रिपोर्ट /आपत्ति कोई हो प्राप्त की गई हो और कलेक्टर द्वारा यह समाधान हो जाता है कि धारा 98 की उप धारा 1 के खंड (क) अथवा (ख) की शर्तें पूरी हो गई है तो खंड (क) के माध्यम से वह कारण अभिलिखित करते हुए अनुमति प्रदान कर सकता है




विकास प्राधिकरण अप्रूव्ड कॉलोनी प्लाटिंग कौन सी होती है और फ्री होल्ड कॉलोनी जमीन कौन सी होती है

1 - D A  एप्रूव्ड ( डी ए से स्वीकृत)  वह जमीन जो विकाश प्राधिकरण किसानों से खरीद कर स्वयं या किसी बड़े बिल्डर से शहरी आवासीय योजना के मानको क...