मंगलवार, 30 मार्च 2021

गिरफ्तारी न देने पर पुलिस को कब गोली मारने का अधिकार है crpc-46

 इस लेख में आप जानेंगे अगर कोई अपराधी व्यक्ति पुलिस की गिरफ्तारी से बचकर भाग रहा है तब पुलिस कब उसके गोली मार सकती है कितना बल प्रयोग कर सकती है




crpc 46 गिरफ्तारी कैसे की जाएगी- उसने बताया गया है कि पुलिस गिरफ्तारी के दौरान कब कितना बल प्रयोग कर सकती है 

यदि कोई ऐसा व्यक्ति जो गिरफ्तार किया जा रहा है और वह बल लगा कर गिरफ्तारी से बचने का प्रयत्न कर रहा है तो ऐसा पुलिस अधिकारी आवश्यक सब साधनों के उपयोग में ला सकता है  आगे भी यह भी बताऊंगा कि कौन-कौन से साधन का प्रयोग कर सकती है पुलिस

 इस धारा की कोई बात ऐसे व्यक्ति की जिस पर मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडित अपराध का अभियोग नहीं है, उसकी मृत्यु कार्य करने का अधिकार नहीं है

 

सरल भाषा में स्पष्टीकरण



गिरफ्तार किया जाने वाला व्यक्ति यदि गिरफ्तारी से बचने के लिए अपने आप को पुलिस से बलपूर्वक छुड़ाता है या प्रतिरोध करता है या गिरफ्तारी से बचने का प्रयत्न करता है तो इसके लिए पुलिस हर आवश्यक साधन का प्रयोग कर सकती है यानी कि उस व्यक्ति को मारा पीटा जा सकता है उसे असला दिखा कर भयभीत किया जा सकता है उसको हथकड़ी लगाई जा सकती है
लेकिन उस समय केवल आवश्यक बल का प्रयोग ही किया जा सकता है जो कि मामले की स्थिति देखकर स्थिति पर निर्भर करता है 

और यदि पुलिस आवश्यकता से अधिक मारपीट गिरफ्तारी के दौरान करती है आवश्यकता से अधिक बल प्रयोग करती है तो आप पुलिस के विरुद्ध पुलिस अधिनियम 1861 की धारा 5 के अंतर्गत कार्यवाही कर सकते हैं

गिरफ्तारी के दौरान बल का प्रयोग इतना नहीं किया जा सकता है कि गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति की मृत्यु ही हो जाए लेकिन हां ऐसा उस स्थिति में किया जा सकता है जब गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति पर उस अपराध को करने का आरोप है जिससे उस व्यक्ति को मृत्युदंड या आजीवन कारावास से दंडित किया जा सकता है 


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परगना क्या होते हैं परगनाधिकारी कौन होता है

इस लेख में आप जानेंगे कि परगना क्या होता है परगना का क्षेत्र कितना होता है परगना किस में आता है परगनाधिकारी कौन होता है

दोस्तों आपने परगना शब्द अक्सर सुना होगा यदि आप जब भी उत्तर प्रदेश की किसी तहसील में किसी जमीन की रजिस्ट्री कराने जाएंगे तो खासकर वहां पर परगना शब्द का उपयोग किया जाता है 

 दोस्तों जिस प्रकार गांव से मिलकर मौजा बना होता है उसी प्रकार कई मौजों से मिलकर एक परगना बना होता है  और कई परगनाओं को मिलाकर एक तहसील बनती है और कई तहसीलों को मिलाकर एक जिला बनता है
उसी प्रकार कई जिलों को मिलाकर एक कमिश्नरी या (मंडल) बनता है  इसी प्रकार उत्तर प्रदेश 18 कमिश्नरी (मंडलों) में विभाजित है

जब भी आप अपनी रजिस्ट्री करवाने जाते हैं तो वहां पर जो भी आप की जमीन की रजिस्ट्री करवाता है वह पूछता है कि आपका परगना कौन सा पड़ता है  आप की जमीन किस परगने  मैं है  इस प्रकार एक तहसील के अंदर  दो या दो से अधिक परगने हो सकते हैं

सहायक कलेक्टर को परगनाधिकारी भी कहा जा सकता है




सोमवार, 29 मार्च 2021

crpc 46 गिरफ्तारी कैसे की जाएगी

इस लेख में आप  सरल भाषा में जानेगे crpc46  गिरफ्तारी कैसे की जाएगी 



crpc 46  (1)  गिरफ्तार करने में पुलिस अधिकारी जो गिरफ्तार कर रहा है , गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति के शरीर को छुएगा या परिरुद्ध  करेगा , जब तक उसने वचन द्वारा या कर्म द्वारा अपने को पुलिस अभिरक्षा में समर्पित न कर दिया हो 

( परंतु यह कि जहां किसी स्त्री को गिरफ्तार किया जाना है, वहां जब तक परिस्थितियां प्रतिकूल न हों, गिरफ्तारी की मौखिक सूचना पर  अभिरक्षा में उसके समर्पण की उप धारणा की जाएगी तथा जब तक परिस्थितियां अन्यथा अपेक्षा न करें अथवा जब तक पुलिस अधिकारी महिला ना हो, तब तक पुलिस अधिकारी स्त्री की गिरफ्तारी करने के लिए उसके शरीर का स्पर्श नहीं करेगा)

(2). ऐसा व्यक्ति अपने गिरफ्तार किए जाने के प्रयास को रोकता है या गिरफ्तार होने से इनकार करता है या गिरफ्तारी से बचने का प्रयत्न करता है तो पुलिस अधिकारी उसे गिरफ्तार करने के लिए आवश्यक सभी साधनों या बल का प्रयोग कर सकता है

(3). इस धारा  के अधीन ऐसे व्यक्ति की जिस पर मृत्यु  या आजीवन कारावास से दंडनीय  अपराध का अभियोग नहीं है तब गिरफ्तारी के दौरान इतना बल का प्रयोग नहीं किया जाएगा  कि उसकी मृत्यु हो जाए

(  असाधारण परिस्थितियों के सिवाय, कोई भी स्त्री सूर्यास्त के पश्चात और सूर्योदय के पहले गिरफ्तार नहीं की जाएगी और जहां ऐसी असाधारण परिस्थितियों विद्यमान है  वहां स्त्री पुलिस अधिकारी, लिखित में रिपोर्ट करके, ऐसे प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व  अनुज्ञा अभिप्राप्त करेगी, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर अपराध किया गया है या गिरफ्तारी की जानी है)


अगर गिरफ्तार किया जाने वाला व्यक्ति यदि गिरफ्तारी से बचने के लिए भागता है या बलपूर्वक प्रतिरोध करता है  तब पुलिस अधिकारी हर आवश्यक साधन जैसे लाठी, डंडा या उसे मारपीट कर या  उसे डरा धमका कर उसकी गिरफ्तारी की जा सकती है  लेकिन बल का प्रयोग उतना ही किया जाएगा कि उस मारपीट या बल से  से गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति की मृत्यु ना हो  लेकिन हां ऐसा उस स्थिति में किया जा सकता है जब गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति पर उस अपराध को करने का आरोप है जिसके लिए उसे मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडित किया जा सकता है   लेकिन अगर कोई पुलिस अधिकारी आवश्यकता से अधिक बल प्रयोग करता है तो उसके विरुद्ध पुलिस अधिनियम 1861 धारा 5 के अंतर्गत कार्रवाई की जा सकती है


दिलीप के० बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी और  निरोध में रखे गए व्यक्ति के संबंध में संरक्षात्मक निर्देश


1. जो पुलिसकर्मी गिरफ्तार कर रहे हैं या गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ कर रहे हैं वह अपने पदनाम के साथ-साथ अपने नाम का टैग और दृष्टिगोचर और स्पष्ट पहचान धारण करना होगा ऐसे समस्त पुलिसकर्मियों की जो गिरफ्तारी किए गए व्यक्ति से पूछताछ कर रहे हो, विवरणियों को एक रजिस्टर में अब लिखित करना होगा


2. ऐसे पुलिस अधिकारी जो गिरफ़्तारी का कार्य कर रहे हो, गिरफ्तारी के समय एक ज्ञापन तैयार करना होगा और ऐसे ज्ञापन को कम से कम एक ऐसे साक्षी द्वारा साक्षांकित करना होगा जो किया तो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार का सदस्य होगा या उस स्थान के एक प्रतिष्ठित  व्यक्ति होगा जहां गिरफ्तारी की गई है वहां ज्ञापन गिरफ्तारी व्यक्ति द्वारा भी   प्रतिहस्ताक्षरित होगा और उसमें गिरफ्तारी का समय और उसकी तारीख भी  होगी

3. वह व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया गया है  अथवा जिसे निरोध में रखा गया है और जिसे पुलिस स्टेशन अथवा पूछताछ केंद्र अथवा हवालात में ले गई है  इस बात का हकदार होगा कि व्यवहार्य: यथाशीघ्र उसके किसी मित्र अथवा नातेदार को यह सूचित कर दिया जाए कि उसे गिरफ्तार कर लिया गया है और विशेष स्थान पर निरुद्ध कर रखा गया है जब तक की गिरफ्तारी के ज्ञापन का  साक्ष्कयांकन  साक्षी स्वयं उस गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का  मित्र अथवा नातेदार ना हो

4. गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का गिरफ्तारी का समय और स्थान और उसकी  अभिरक्षा का स्थान भी पुलिस द्वारा अवश्य अधिसूचित किया जाना चाहिए , जहां उस गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का निकटतम मित्र अथवा नातेदार उस जिले अथवा नगर के बाहर रहते हो| अधिसूचना का यह कार्य उस जिले के और संबंधित क्षेत्र के पुलिस स्टेशन के विधिक सहायता संघटन के माध्यम से तार द्वारा गिरफ्तारी के बाद 8 से 12 घंटे की अवधि के भीतर किया जाना चाहिए

5. गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी अथवा निरोध के बाद यथाशीघ्र उसके अधिकार से अवश्य अवगत करा देना चाहिए कि वह अपनी गिरफ्तारी अथवा   निरोध की सूचना किसी को दे सकता है

6. निरोध के स्थान पर एक डायरी में गिरफ्तार व्यक्ति के संबंध में आवश्य ही  प्रविष्टि की जाएगी जिस में गिरफ्तार व्यक्ति के उस निकटतम मित्र का नाम उल्लिखित होगा जिसे गिरफ्तारी की सूचना दी गई थी

7. गिरफ्तार व्यक्ति यदि निवेदन करता है तो गिरफ्तारी के समय उसकी बड़ी और छोटी  क्षतियो की परीक्षा कराई जाएगी जो कि यदि कोई हो , उसके शरीर पर पाई जाए और उसे उस समय अभिलिखित भी किया जायेगा| उस निरीक्षण ज्ञापन पर गिरफ्तार व्यक्ति और गिरफ्तारी करने वाले पुलिस  अधिकारी दोनों का आवश्यक हस्ताक्षर होगा और उसको एक प्रति गिरफ्तार व्यक्ति को दी जाएगी

8. गिरफ्तार व्यक्ति की प्रति 48 घंटे पर   अभिरक्षा में उसकी निरोध के दौरान एक प्रशिक्षित चिकित्सक द्वारा चिकित्सा परीक्षा कराई जाएगी जो कि राज्य अथवा संघ राज्य क्षेत्र स्वास्थ्य सेवाओं द्वारा नियुक्त अनुमोदित   किया हुआ चिकित्सक होगा

9. समस्त दस्तावेजों की प्रतियां जिसमें ऊपर उल्लिखित गिरफ्तारी का ज्ञापन भी सम्मिलित है इलाका मजिस्ट्रेट को भी उसके अभिलेख के लिए भेजी जाएंगी


10. गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को पूछताछ के दौरान न कि उस संपूर्ण अवध में अपने वकील से मिलने की अनुमति दी जा सकती है 


11. एक पुलिस नियंत्रण कक्ष प्रत्येक जिले और राज्य मुख्यालय पर स्थापित करना होगा और वहां पर गिरफ्तारी और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की  अभिरक्षा के स्थान से उस अधिकारी द्वारा जिसने गिरफ्तारी का कार्य किया है, सूचना भेजनी होगी यह गिरफ्तारी के 12 घंटे के भीतर किया जाएगा और पुलिस नियंत्रण कक्ष पर उसे किसी सहज दृश्य सूचना पटल पर चिपकाया जाएगा

नोट- उच्चतम न्यायालय के उपयुक्त आदेश का यदि अनुपालन नहीं किया जाता है तो संबंधित अधिकारी न केवल विभागीय कार्रवाई के लिए उत्तरदाई होंगे बल्कि  वे न्यायालय की अवमानना के लिए दंडित भी किए जा सकते हैं





गुरुवार, 25 मार्च 2021

कमिश्नरिया क्या होती है कमिश्नर (मंडलायुक्त) क्या होते हैं?

इस लेख में आप शार्ट में जानेंगे कमिश्नरिया क्या होती है और कमिश्नर जिसे हम मंडलायुक्त भी कहते हैं क्या होते हैं और उनके कार्य क्या होते हैं?


  कमिश्नरिया  उत्तर प्रदेश 18 कमिश्नर यो में विभाजित है सरल भाषा में जिस प्रकार परगनाओं से मिलकर तहसील बनती है तथा तहसील से मिलकर जिला बनता है उसी प्रकार जिलों से मिलकर कमिश्नरी बनती है
इस प्रकार 1 कमिश्नरी में दो या दो से अधिक जिले हो सकते हैं 

 कमिश्नरी के कार्य जब कोई आपका कृषि की जमीन से संबंधित कोई मामला होता है राजस्व से जुड़ा मामला है तो सबसे पहले आप तहसीलदार  न्यायालय के यहां जाते हैं उसके बाद आप अपील के लिए सहायक कलेक्टर के पास जाते हैं और उसके बाद वह मामले की अपील आप कमिश्नरी में कर सकते हैं 

* कमिश्नरी एक राजस्व न्यायालय हैं जो राजस्व मामलों को देखता है

* कमिश्नरी मे केवल अपीलीय मामले जाते हैं

 कमिश्नर क्या होते हैं कमिश्नर यहां पर पुलिस कमिश्नर की बात नहीं की गई है यहां पर बात की गई है कमिश्नर जिन्हें हम  मंडलायुक्त की भी कहते हैं 

* इनकी नियुक्ति राज्य सरकार करती है 

*यह कमिश्नरयो में होते हैं और यह राजस्व मामले देखते हैं

* यह राजस्व न्यायालय और राजस्व अधिकारी होते हैं

* तथा कमिश्नर जिसे मंडलायुक्त बोलते हैं यह कलेक्टर से बड़ा पद है



मंगलवार, 23 मार्च 2021

IPC 499 ,500 मानहानि कब होती है लांछन लगाना

 इस लेख में शॉर्ट में और सरल भाषा में आप जानेंगे कि मानहानि कब होती है और और कब नहीं होती है मानहानि के लिए कितने वर्ष का कारावास है 



व्यक्तियों की प्रतिष्ठा(इज्जत या सम्मान )को बनाए रखने के लिए IPC की धारा 499 से 502 तक में मानहानि के बारे में प्रावधान किया है लेकिन आज हम आपको आईपीसी की धारा 499 मानहानि और आईपीसी की धारा 500 मानहानि के लिए दंड के बारे में बताएंगे


IPC 499  मानहानि   किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाया या प्रकाशित किया जाता है कि ऐसे लांछन से ऐसी व्यक्ति की  ख्याति (सम्मान) प्रतिष्ठा की  अपहानी  होती है या कोई व्यक्ति जानबूझकर यह विश्वास करने का कारण देखते हुए उसके बारे में कोई गलत लांछन लगाता है या  प्रकाशित करता है   जिससे किसी व्यक्ति  के सम्मान की  अपहानी  होगी तो लांछन लगाने या प्रकाशित करने वाले व्यक्ति को सिर्फ अपवादित दशाओं को छोड़कर
ऐसा माना जाएगा कि जिसने लांछन लगाया है वह व्यक्ति उस व्यक्ति की  मानहानि करता है

1. उदाहरण - अगर कोई व्यक्ति किसी मरे हुए व्यक्ति को भी कोई लांछन लगाता है तो वह भी मानहानि की श्रेणी में आएगा   क्योंकि मरे हुए व्यक्ति पर लांछन लगाने से उस मरे हुए व्यक्ति के पुत्र पुत्री या रिश्तेदार या जो भी संबंधी है उनको पीड़ा होगी उनको परेशानी होगी  उनके सम्मान की अपहानि होगी इसलिए  यह मानहानि की कोटि में आता है


नोट-  किसी व्यक्ति पर लांछन बोले गए शब्दों द्वारा, या किसी अखबार या लिखे गए शब्दों द्वारा   या संकेतों द्वारा  लगाया जा सकता है  ,और लांछन द्वारा दूसरे व्यक्ति  की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाने का आशय मानहानि का महत्वपूर्ण आवश्यक तत्व है 


2. उदाहरण- अगर कोई व्यक्ति किसी कंपनी या व्यक्तियों के समूह पर इस आशय से लांछन लगाता है कि उस कंपनी की बदनामी हो जो भी व्यक्तियों का समूह है उनकी बदनामी हो  उनका नुकसान हो तो यह स्थिति भी मानहानि की श्रेणी में आती है


मानहानि के कुछ अपवाद जब कुछ लांछन को मानहानि की श्रेणी में नहीं रखा जाता है


1. अपवाद- सत्य बात का लांछन जिसका लगाया जाना है या  प्रकाशित किया जाना लोक कल्याण के लिए अपेक्षित है किसी ऐसी बात का लांछन लगाना जो किसी व्यक्ति के संबंध में सत्य हो वास्तव में सत्य है तो वह मानहानि नहीं है        उदाहरण- अगर कोई दुकानदार खाने का तेल में वास्तव में मिलावट करता है और उसका खाने का तेल वास्तव में खराब है  तो आप लोगों को बता सकते हैं कि वह दुकानदार बेकार मिलावटी खाने का तेल बेचता है लोगों को आप सचेत कर सकते हैं जो कि मानहानि की श्रेणी में नहीं आता है 


2. अपवाद न्यायालयों की कार्रवाई की  रिपोर्टो का प्रकाशन करना -किसी न्यायालय को कार्रवाई की या किन्ही ऐसी कार्रवाइयों के परिणामम की सारतः सही रिपोर्ट को प्रकाशित करना मानहानि नहीं है


3. प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष सदभावना पूर्वक अभियोग लगाना मानहानि नहीं है


4. अधिवक्ता द्वारा नोटिस का जवाब भी मानहानि नहीं है यदि कोई अधिवक्ता किसी व्यक्ति के नोटिस का जवाब अपने लिपिक से लिखवाता  है तथा ऐसे जवाब में लांछन होते हैं , तब भी इसे धारा 499 एवं 500 के प्रयोजनार्थ  प्रकाशन नहीं माना जा सक्ता क्योंकि अधिवक्ता का यह कार्य उसके वृत्तिक संसूचना के अधिकार के अंतर्गत संरक्षित है


IPC धारा 500 मानहानि के लिए दंड-  जो कोई किसी अन्य व्यक्ति की मानहानि करेगा वह सादा कारावास से जिसकी अवधि 2 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जाएगा

शनिवार, 20 मार्च 2021

sc.st अनुसूचित जाति की भूमि कैसे खरीदी जा सकती है UPRC धारा 98,99

 इस लेख में बात करेंगे कि उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के लोगों को जमीन बेचने पर क्या अधिकार क्या कानूनी प्रावधान है कब जमीन बेच सकते हैं और कब नहीं बेंच सकते हैं


 
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 (UPRC 2006)
 की धारा 98 और 99 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भूमिधरो द्वारा अंतरण पर प्रतिबंध लगाया गया है


UPRC धारा 98 के अनुसार अनुसूचित जाति के भूमिधरो द्वारा अंतरण पर प्रतिबंध- (1) इस अध्याय के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना , अनुसूचित जाति के किसी भी भूमिधर को कलेक्टर की लिखित पूर्व अनुज्ञा ( परमिशन) के बिना, कोई भूमि किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति से अन्य किसी व्यक्ति को विक्रय( बेचना), बंधक या पट्टा द्वारा अंतरित( बैनामा कराना )करने का अधिकार नहीं होगा:


लेकिन कलेक्टर द्वारा ऐसी  अनुज्ञा या ऐसी परमिशन तभी दी जा सकती है जब- यह कारण हो



(क). अनुसूचित जाति के भूमिधर के पास धारा 108 की उप धारा(2) के खंड  क, अथवा धारा 110 के खंड क, जैसी भी स्थिति हो, मे विनिर्दिष्ट कोई जीवित उत्तराधिकारी ना हो  तो ऐसी कंडीशन में कलेक्टर भूमि बेचने के लिए परमिशन दे सकता है  या फिर

(ख) अनुसूचित जाति का भूमिधर जिस जिले में अंतरण के लिए प्रस्तावित भूमि स्थित है , और वह उस जिले से किसी दूसरे जिले में अथवा किसी दूसरे राज्य में नौकरी अथवा किसी व्यापार या नियमित रूप से या सामान्य रूप से वही रह रहा है  तो ऐसी कंडीशन में भी उसे जमीन बेचने के लिए कलेक्टर परमिशन दे सकता है या देने का अधिकार रखता है 

(ग) कलेक्टर का समाधान हो गया है कि विहित कारणों से भूमि के अंतरण की अनुज्ञा देना आवश्यक है तो कलेक्टर भूमी बेचने के लिए लिखित रूप से परमिशन दे सकता है

UPRC धारा 99. अनुसूचित जनजाति के भूमिधर द्वारा अंतरण पर प्रतिबंध- इस अध्याय के उपबंधो पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना  अनुसूचित जनजाति के किसी भूमिधर को भूमि विक्रय दान बंधक या पट्टा के द्वारा किसी भूमि को अनुसूचित जनजाति से अलग किसी व्यक्ति को अंतरण करने का अधिकार नहीं होगा

दोस्तों जैसा कि UPRC 98 में अनुसूचित जाति के व्यक्ति को अनुसूचित जाति के सिवा किसी अन्य व्यक्तियों को जमीन बेचने का अधिकार नहीं है
 उसी तरह UPRC 99 में अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति के सिवा किसी को अपनी भूमि बेचने का अधिकार नहीं है

शुक्रवार, 19 मार्च 2021

CPC सिविल प्रक्रिया संहिता धारा 9 दीवानी मामले क्या होते हैं

दोस्तों इस लेख में CPC सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 9 दीवानी प्रकृति के मामलों के बारे में शार्ट में जानकारी दी गई है




 दीवानी प्रकृति के वाद - दीवानी प्रकृति के वाद से  तात्पर्य ऐसे  वाद से है जिसमें किसी महत्वपूर्ण अधिकार के  प्रवर्तन की मांग की जाती है दीवानी प्रकृति का वाद किसे कहते हैं यह जानने के लिए सीपीसी धारा 9 के स्पष्टीकरण नंबर एक की सहायता लेना जरूरी है इस स्पष्टीकरण में यह बताया गया है कि दीवानी प्रकृति के वाद किसे कहते हैं इस स्पष्टीकरण की भाषा के अनुसार दीवानी प्रकृति का वाद किसे कहते हैं जिसमें संपत्ति संबंधी या पद संबंधी अधिकार प्रतिवादित हैं

स्पष्ट शब्दों में दीवानी प्रकृति का वाद उस वाद को कहते हैं जिसमें संपत्ति संबंधी या पद संबंधी अधिकार संबंधी या अन्य कोई सिविल अधिकार प्रतिवादित है  

ऐसे वाद जो दीवानी प्रकृति के वाद माने गए हैं जैसे

1 पूजा का अधिकार - पूजा करने का अधिकार एक दीवानी अधिकार है और अपने पूजा करने के अधिकार को स्थापित करने के लिए कोई भी वाद लाया जा सकता है ऐसा बाद दीवानी प्रकृति का वाद होगा किसी धार्मिक संस्था में घूमने के लिए व्यक्ति के अधिकार को स्थापित करने का वाद और पूजा के स्थान में घुसने से वादी को रोकने संबंधी वाद दीवानी वाद है

2.  मत देने का अधिकार-  वोट देने का अधिकार एक दीवानी अधिकार है और जब कभी भी इस अधिकार का हनन होता है तो दीवानी वाद लाया जा सकता है.

3. विशिष्ट अनुतोष का अधिकार- विशिष्ट अनुतोष का अधिकार तथा संविदा के विनिर्दिष्ट पालन का अधिकार,
 प्रपत्र के संशोधन संबंधी अधिकार, प्रसंविदा को निरस्त कराने से संबंधित  अधिकार यह दीवानी अधिकार है और ऐसे अनुतोष की प्राप्ति के लिए दीवानी किया जा सकता है

4. क्षतिपूर्ति  का अधिकार- यह भी एक दीवानी प्रकृति का वाद है

5. जन्मतिथि से सुधार संबंधी  वाद -यह भी एक दीवानी प्रकृति का वाद है


लेकिन कुछ वादों को दीवानी वाद नहीं माना गया है सामान्यतः उन वादों को दीवानी प्रकृति का वाद नहीं माना गया है जिसमें मुख्य विचारणीय प्रश्न दीवानी या विविध अधिकार से संबंधित नहीं है वे अधिकार जो किसी व्यक्ति में नागरिक की हैसियत से विहित नहीं है अपितु एक संस्था या समुदाय के सदस्य के रूप में  विहित हैं सामान्यतः दीवानी अधिकार नहीं माने जाएंगे


 उदाहरण स्वरूप- जहां कोई संस्था या समुदाय अपने कुछ आंतरिक उद्देश्यों के लिए अपने लिए या उप नियमों से शासित होती है वहां वे प्रश्न या वे मसले जिनसे संस्था या समुदाय की आंतरिक  स्वायत्तता प्रभावित होती है या उनके सदस्यों के अंतरिक संबंध प्रभावित होते हैं विधिक अधिकार या दायित्व को उत्पन्न नहीं करते
अगर न्यायालय ऐसे प्रश्नों पर विचार करें तो उसका अर्थ यह होगा कि यह संस्था समुदाय के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं और उन प्रश्नों का निर्णय दे रहे हैं जिन पर निर्णय देने का अधिकार केवल संस्था या समुदाय को है 

जैसे- औद्योगिक विवाद अधिनियम से संबंधित वाद

  दोस्तों इस लेख में सीपीसी सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 9 के बारे में शार्ट जानकारी दी गई है






गुरुवार, 18 मार्च 2021

UPRC धारा 25,26,27 सड़क या जलमार्ग से रोक हटवाने का प्रावधान

इस लेख में आप जानेंगे उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 25, 26, 27 क्या प्रावधान करती हैं 
 धारा 25 मार्ग अधिकार और अन्य सुखाचार अधिकार के बारे में  तथा धारा 26  उस अवरोध को हटाए जाने के संबंध में तथा धारा 27 उप जिला अधिकारी की पुनरीक्षण शक्ति के बारे में प्रावधान करती है 




UPRC 25 मार्ग  अधिकार और अन्य सुखाचार- ऐसे मार्ग के संबंध में जो सार्वजनिक सड़क या सार्वजनिक भूमि से  अलग जिसमें कोई खातेदार या कृषि श्रमिक अपनी भूमि पर या गांव की बंजर भूमि या चरागाह भूमि पर पहुंच सके  या  पहुंचने की स्त्रोत या ऐसे जलमार्ग से संबंध में जहां से या जिससे वह सिंचाई संबंधी सुविधाओं का लाभ उठा सकें अगर वहां पर कोई विवाद उत्पन्न होने की दशा में तहसीलदार ऐसी स्थानीय जांच के बाद आवश्यक समझी जाए विद्यमान प्रथा के निर्देश में और समस्त समृद्ध पच्छों की सुविधा का ध्यान रखते हुए मामले का विनिश्चय कर सकता है और वह ऐसे अवरोधों को हटाने के लिए निर्देश दे सकता है औरों के कार्य केके लिए ऐसे बल का प्रयोग कर या करवा सकता है जैसा आवश्यक हो


UPRC 26   अवरोध का हटाया जाना= यदि तहसीलदार को यह पता चले कि किसी अवरोध से गांव की किसी सार्वजनिक सड़क या सार्वजनिक भूमि के आबाध उपयोग में रुकावट पड़ती है तो ऐसी सड़क या जलमार्ग या जल के  अवरोध को हटाने का निर्देश दे सकता है और उस प्रयोजन के लिए ऐसे बल का उपयोग कर सकता है या करा सकता है जो आवश्यक है 

UPRC 27. उप जिला अधिकारी की पुनरीक्षण संबंधित शक्ति- उप जिला अधिकारी धारा 25 या धारा 26 के अधीन तहसीलदार द्वारा विनिश्चय किए गए किसी मामले के अभिलेख को ऐसे विनिश्चय की वैधता और औचित्य के संबंध में अपना समाधान करने के प्रयोजन से मांग कर सकता है और संबंधित पक्षकार को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात ऐसा आदेश पारित कर सकता है जैसा वह उचित समझे

रविवार, 14 मार्च 2021

Right to information (RTI)2005 सूचना का अधिकार

   इस लेख में हम बात करेंगे कौन से विभाग और कौन सी सरकारी संस्थाओं से आप सूचना ले सकते हैं

 और कब आपको सूचना लेने का अधिकार नहीं है कब आपको सूचना देने से इनकार किया जा सकता है?







Right to Information (RTI) हिंदी में सूचना अधिकार अधिनियम 2005  कहते हैं 


सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 2H  मैं लोक प्राधिकारी की परिभाषा दी गई है जिसमें निम्न  लोक प्राधिकारी आते हैं-


1. स्कूल कॉलेज
2. सरकारी सहायता प्राप्त प्राइवेट स्कूल
3. सरकारी बीमा कंपनियां
4. सरकारी फोन कंपनियां
5. सरकार से फंडिंग पाने वाले एनजीओ
6. अदालतें
7. संविधान के अधीन विधियां
8. संसद या राज्य विधान मंडल द्वारा बनाई गई विधियां



लोक प्राधिकारी की बाध्यताये - सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 8 लोक प्राधिकारी की बाध्यताये दी गई है जो कि कुछ इस प्रकार है-



1. जो सूचना किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित है तो संबंधित आवेदक के अनुरोध पर 48 घंटे में दे दी जानी चाहिए

2. सूचना के लिए आवेदनों का निपटारा 30 दिनों में कर दिया जाना चाहिए

3. इस अधिनियम के अंतर्गत सूचना प्राप्त करने हेतु कोई भी शुल्क युक्तियुक्त होगा तथा उन लोगों से कोई भी शुल्क नहीं लगेगा जो गरीबी रेखा से नीचे हैं

4. यदि सूचना हेतु निश्चित समय के अंदर सूचना प्रदान नहीं की जाती है तो सूचना हेतु आवेदन करने वाले व्यक्ति को सूचना निशुल्क दी जाएगी

5. सूचना मांगने वाले व्यक्ति को निश्चित समय सीमा के बाद 40 दिनों के अंदर ऐसे आग्रह पर निर्णय लिया जा सकता है कि जो भी सूचना है उस सूचना को देना उचित है या नहीं है


अब बात करेंगे ऐसी सूचनाएं जिन्हें देने से इनकार किया जा सकता है-


1. वह सूचना जो भारत की अखंडता तथा प्रभता के विरुद्ध हो 

2. वह सूचना जो राज्य की सुरक्षा और आर्थिक हित के विरुद्ध हो

3. वह सूचना जिससे किसी अपराध की शुरुआत होती हो

4. ऐसी सूचना जिससे न्यायालय की अवमानना होती है वह सूचना भी देने से इनकार किया जा सकता है

5. ऐसी सूचनाएं जिससे संसद या राज्य विधानमंडल की गोपनीयता भंग होती है

6. ऐसी सूचनाएं विदेशी सरकार के खिलाफ विश्वास में प्राप्त सूचना

7. वह सूचना जो किसी व्यक्ति के जीवन है या शारीरिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करती है वह सूचना देने से भी इनकार किया जा सकता है

8. वह सूचना जिससे अन्वेषण अपराधियों की गिरफ्तारी अभियोजन की क्रिया में दिक्कत आती हो वह सूचना देने से भी इनकार किया जा सकता है

9. मंत्रिमंडल के कामकाज से संबंधित सूचनाएं को भी देने से इनकार किया जा सकता है

शनिवार, 13 मार्च 2021

NI Act 1881 परक्रम्य लिखित अधिनियम 1881

 Negotiable instruments act 1881  (NI Act) जिसे हिंदी में  परिक्रम्य लिखित अधिनियम 1881 भी  कहते हैं



यह अधिनियम वचन-पत्रों, विनिमय पत्रों और चेकों से संबंधित विधि को परिभाषित  और संशोधित करना समीचीन है 

पूरे भारत में कार्य करने वाली  वित्तीय संस्थान , उद्योग संगठन  और सामान्य जनता भी अपने लेनदेन अधिकतर चेक के द्वारा ही करते हैं चेक के माध्यम से वित्तीय कारोबार में होने वाली सुविधाओं के साथ  समस्याएं भी उत्पन्न होती है चेक के माध्यम से कारोबार में होने वाली शिकायतों को दर्ज कराने की व्यवस्था 

Negotiable instruments act 1881 (NI Act)
परिक्रम्य लिखित अधिनियम 1881  मैं प्रदान की गई है



 परिक्रम्य लिखित अधिनियम 1881  की धारा 138 चेक बाउंस होने की स्थिति में वाद दायर करने से संबंधित है  



 परक्रम्य लिखित संशोधन  अधिनियम  2015 जारी किया इस  अधिनियम में यह प्रावधान किया गया कि चेक बाउंस होने के मामले में मुकदमा उसी स्थान पर क्षेत्राधिकार में दायर होगा जहां चेक को प्रस्तुत किया जाएगा 

NI Act की धारा 2 , 72 वा 138 का संयुक्त अध्ययन चेकों को उस बैंक पर प्रस्तुत किए जाने का आदेश देता है  

crpc 41 d (घ) गिरफ्तार व्यक्ति को पूछताछ के दौरान अपनी पसंद के अधिवक्ता से मिलने का अधिकार

 मिलने का अधिकार  जब किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता हैओर पूछताछ की जाती है तब वह पूछताछ के दौरान  लेकिन संपूरण पूछताछ के दौरान नहीं अपनी  मन पसंद के अधिवक्ता से मिलने का अधिकार रखता है 


 संक्षिप्त विस्तार में जाने

दंड प्रक्रिया संशोधन अधिनियम 2008 की धारा 6 द्वारा नई धारा 41 क, 41ख ,41ग ,41घ  का अंत:स्थापन किया गया है धारा 41 क,उपबंध करती है कि पुलिस अधिकारी उन सभी मामलों में जहां धारा 41 की उप धारा 1 के अधीन  व्यक्ति की गिरफ्तारी आपेक्षित ( मांग होना) नहीं उसी व्यक्ति जिसके विरुद्ध युक्तियुक्त परिवाद किया गया है या विश्वसनीय सूचना प्राप्त की गई है या यह संदेह होता है कि उसने संज्ञेय अपराध किया है

अपने समक्ष उपस्थित होने के लिए निर्देश देते हुए नोटिस जारी करेगा धारा 41 ख,गिरफ्तारी की प्रक्रिया तथा गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के कर्तव्य का उपबंध करती है धारा 41 ग, राज्य सरकार से यह अपेक्षा (मांग) करती है कि वह प्रत्येक जनपद में तथा राज्य स्तर पर पुलिस नियंत्रण कक्ष स्थापित करें जहां गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के नाम तथा पता अपराध की प्रकृति जिसका उन पर आरोप है  तथा पुलिस अधिकारी जिसने गिरफ्तारी की है का नाम पदनाम प्रदर्शित किए जाएं  

धारा 41घ गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के उनसे पूछताछ के दौरान लेकिन  संपूर्ण पूछताछ के दौरान नहीं  अपनी पसंद के अधिवक्ता से मिलने का अधिकार का अधिकार देती है


गुरुवार, 11 मार्च 2021

crpc sec-2 ग (c) संज्ञेय अपराध sec-2ठ (L) असंज्ञेय अपराध

 संज्ञेय अपराध और असंज्ञेय अपराध के बारे में सरल और विस्तार से जानकारी जाने 



सीआरपीसी crpc  के सेक्शन 2ग या इंग्लिश मे  2c  मे    संज्ञेय अपराध की परिभाषा दी गई है    और सीआरपीसी सेक्शन 2ठ या  इंग्लिश मे  2L मे असंज्ञेय अपराध  को परिभाषित किया गया है


                                                                         

                                                               1पॉइंट 

crpc 2c संज्ञेय अपराध या  संज्ञेय मामले  से  ऐसा अभिप्रेत है ऐसा अपराध जो गंभीर किस्म का अपराध है
ऐसा अपराध जिसको करने पर उसकी सजा 3 वर्ष या 3 वर्ष से अधिक के कारावास के दंडनीय  है वह अपराध संज्ञेय अपराध कहलाता है अथवा संज्ञेयअपराध की श्रेणी में आता है   लेकिन 


 crpc 2L  असंज्ञेय अपराध असंज्ञेय अपराध का ऐसे अपराध से अभिप्रेत है जो असंज्ञेय मामला है  यानी  जो अपराध कम गंभीर  अपराध है  ऐसा अपराध जो करने पर 3 वर्ष से कम के कारावास दंणनीय है वह  असंज्ञेय अपराध कहलाता है अथवा असंगज्ञेय अपराध की श्रेणी में  आता है


                                                                 2पॉइंट 

crpc 2c  इस उपधारा के अनुसार संज्ञेय अपराध या संज्ञेय मामले में  ऐसे मामले मे  पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है  लेकिन 


crpc2L  इस उप धारा के अनुसार असंज्ञेय अपराध या  असंज्ञेय के मामलों में  पुलिस अधिकारी सामान्यतः वारंट के बिना गिरफ्तार नहीं कर सकता है  पर CRPC 42 कुछ कारण बताए है उनको भी जानले  
crpc42 के  अनुसार जब कोई व्यक्ति पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में कोई अंसंज्ञेय अपराध करता है  या जिस पर पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय  अपराध करने का अभियोग लगाया गया है
 और उस पुलिस अधिकारी की मांग पर यदि वह व्यक्ति अपना नाम और निवास बताने से इंकार करता  या वह गलत नाम पता  बताता है  तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता 

                                                                3पॉइंट 


crpc-2c   संज्ञेय  अपराध में पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश निर्देश के बिना इस तरह के मामले का अन्वेषण (जांच) कर सकता है   लेकिन

crpc-2L असंज्ञेय अपराध में  पुलिस अधिकारी बिना किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट की अनुमति के  इस तरह के मामलों का अन्वेषण जांच नहीं कर सकता और ना ही उसके पास इस तरह के मामलों का अन्वेषण जांच करने का अधिकार है







रविवार, 7 मार्च 2021

crpc sec. 42 नाम और निवास बताने से इनकार करने पर गिरफ्तारी

 

नाम और निवास बताने से इनकार करने पर गिरफ्तारी 


1.जब कोई व्यक्ति जिसने पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में कोई असंज्ञेय अपराध किया है या जिस पर पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय अपराध करने का अभियोग लगाया गया है और उस अधिकारी की मांग पर अपना नाम और निवास बताने से इनकार करता है या ऐसा नाम या निवास बताता है जिसके बारे में उस पुलिस अधिकारी को यह विश्वास करने का कारण है कि वह नाम व निवास झूठा है  अथवा गलत है 



तब वह ऐसे अधिकारी द्वारा इसलिए गिरफ्तार किया जा सकता है कि उसका नाम और निवास निश्चित सही पता किया जा सके

2. जब ऐसे व्यक्ति का सही नाम और निवास निश्चित कर लिया जाता है तब वह प्रतिभुओ (जमानतदारो) सहित यह बंध पत्र निष्पादित करने पर छोड़ दिया  जाएगा कि यदि उससे मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने की अपेक्षा की गई तो वह उसके समक्ष हाजिर होगा 

3. यदि गिरफ्तारी के समय से 24 घंटों के अंदर ऐसे व्यक्ति का सही नाम और निवास निश्चित नहीं किया जा सकता है या वह बंध पत्र निष्पादित करने में या अपेक्षित किए जाने पर पर्याप्त प्रतिभू  (जमानती) देने में असफल रहता है तो वह अधिकारिता रखने वाले निकटतम मजिस्ट्रेट के पास तत्काल भेज दिया जाएगा



शनिवार, 6 मार्च 2021

मिताक्षरा और दायभाग में अंतर

*इस लेख में जाने की हिंदू  विधि मिताक्षरा और दायभाग शाखाओं के बारे में

*और साथ में ही जानेंगे क्या पिता पैतृक संपत्ति को बेच सकता है या उसकी वसीयत कर सकता है

मिताक्षरा और दाय भाग दोनों ही हिंदू विधि की शाखाएं हैं और हिंदुओं में इन्हीं के अनुसार उत्तराधिकार प्राप्त होता है  लेकिन यहां पर महत्वपूर्ण बात है कि कौन सी शाखा कहां पर लागू होती है

हिंदू विधि की   प्रथम शाखा मिताक्षरा  तथा दूसरी शाखा  दायभाग है  दायभाग का सिद्धांत बंगाल में प्रचलित हैं   तथा  मिताक्षरा के सिद्धांत भारत में प्रचलित हैं   



चलिए जान लेते हैं मिताक्षरा और दाय भाग के सिद्धांतों में क्या अंतर है


1. मिताक्षरा   मिताक्षरा शाखा में पुत्र का   पिता की पैतृक संपत्ति में जन्म से ही अधिकार हो जाता है पुत्र पिता के साथ सहस्वामी होता है संपत्ति के हस्तांतरण करने का पिता का अधिकार उसके पुत्र के अधिकार के कारण नियंत्रण में रहता है तथा पिता के मरने के बाद पुत्र उसके अंश को उत्तरजीविता से  प्राप्त करता है

दोस्तों स्पष्ट शब्दों में मिताक्षरा प्रथा जो है वह अपने भारत में प्रचलित है मिताक्षरा प्रथा के अनुसार
जो आपके पिता की पैतृक संपत्ति है उस पर पुत्र का अधिकार जन्म से होता है और वह पिता के साथ ही  उस पैतृक संपत्ति पर सह स्वामी होता है  |

 तो इसलिए भविष्य में अगर पिता उस पैतृक संपत्ति को बेचता है या किसी विशेष एक पुत्र को रजिस्ट्री करता है या वसीयत कराता है तो ऐसी स्थिति में  पिता ऐसा नहीं कर सकता  क्योंकि हिंदू विधि मिताक्षरा के अनुसार पिता की पैतृक संपत्ति में पुत्र का जन्म से अधिकार होने के कारण पिता के अधिकार  पैतृक संपत्ति पर सीमित रहते हैं 

इसलिए हिंदू विधि के अनुसार भारत में पिता अपनी पैतृक संपत्ति को किसी एक विशेष पुत्र को ना तो वसीयत कर सकता है और ना ही बिना पुत्र की इजाजत के वह पैतृक संपत्ति को बेच सकता है


 नोट1-  दोस्तों वैसे तो कई मामलों में पिता अपनी पैतृक संपत्ति को  भी किसी एक विशेष पुत्र को वसीयत कर देते हैं या रजिस्ट्री कर देते हैं   और वह हो भी जाती है
लेकिन अगर दूसरा पुत्र इस पर ऑब्जेक्शन करें न्यायालय जाए तो ऐसी संपत्ति की वसीयत या रजिस्ट्री हिंदू विधि की मिताक्षरा प्रथा के अनुसार ऐसी वसीयत या रजिस्ट्री अमान्य होगी और सभी पुत्रों में बराबर बटेगी

 नोट 2- अगर पिता अपनी पैतृक संपत्ति को घर में किसी दवाई इलाज के लिए पैतृक संपत्ति बेचता है तो वह बेच सकता है



2. हस्तांतरण के संबंध में संयुक्त परिवार के संयुक्त सदस्य संयुक्त संपत्ति में अपने अंश को तब तक हस्तांतरित नहीं कर सकते जब तक वह अविभक्त या विभाजन नहीं हुए 

 3.फैक्टम वेल्ट का सिद्धांत- यह सिद्धांत मिताक्षरा पद्धति में सीमित रूप में माना गया है


 1.दायभाग - शाखा में पुत्र का पिता की संपत्ति में अधिकार पिता की मृत्यु के बाद उत्पन्न होता है पिता का अपने जीवन काल में संपत्ति पर परम अधिकार होता है पुत्र का उससे कोई  संबंध नहीं होता प्रत्येक व्यक्ति का अंश उसकी  दाय  के रूप में उसके दायदो को प्राप्त होता है उत्तरजीविता का नियम यहां लागू नहीं होता

स्पष्ट शब्दों में जो दाय भाग साखा है वहां पर पुत्र का पिता की पैत्रक संपत्ति में पिता की मृत्यु के बाद ही अधिकार होता है  और पिता का अपने जीवन काल में संपत्ति पर पूर्णतया परम अधिकार होता है  

 और दाय  भाग के अनुसार पिता की जो   संपत्ति होती है पुत्र को उस संपत्ति पर पिता की मृत्यु के बाद ही उस संपत्ति पर अधिकार प्राप्त होगा  और पिता के जीते जी पुत्र का संपत्ति पर कोई भी किसी प्रकार का अधिकार नहीं होता  सिर्फ पिता का अधिकार होता है

2.  दाय  भाग के अनुसार संयुक्त परिवार का कोई भी सदस्य अविभक्त या बिना विभाजन के संपत्ति में अपने अंश को हस्तांतरित कर सकता है

3. फैक्टम वैलेट का सिद्धांत दाएं भाग में पूर्ण रूप से माना गया है







गुरुवार, 4 मार्च 2021

जमीन की रजिस्ट्री के बाद कब्जा कब लेना चाहिए

दोस्तों इस लेख में आप जानेंगे यदि आपने कोई भी जमीन खरीदी है उसकी रजिस्ट्री करा लिए तो आपको उस पर कब्जा कब कर लेना चाहिए और कब कानूनी रूप से आप उस पर कब्जा कर सकते हैं


सबसे पहले आपको पता होना चाहिए कि रजिस्ट्री में क्या-क्या अंतरण किया जाता है अंतरण का मतलब होता है ट्रांसफर वैसे तो सामान्यत है जो जमीन आप खरीदते हैं उसी का अंतरण होता है   साथ में यह भी जरूरी होता है कि उस जमीन में कोई अचल संपत्ति है जैसे कोई पेड़ है बोरिंग है कुआं है नल है उनका भी जमीन के साथ अंतरण करवा सकते हैं

 जिससे आप जो भी पेड़ बोरिंग कुआं है उसके स्वामी बन जाते हैं इससे आपको यह फायदा होगा कि आप जिस व्यक्ति से जमीन खरीद रहे हैं वह भविष्य में यह दावा नहीं कर सकता है कि इसमें इस जमीन में जो भी कुआं या बोरिंग है वह हमारा है इसका अंतरण नहीं किया है ऐसी कोई भी विवाद की स्थिति पैदा नहीं होगी

संपत्ति अंतरण अधिनियम के अनुसार चल अथवा अचल दोनों ही प्रकार की संपत्ति का अंतरण किया जा सकता है 





अब बात करेंगे संपत्ति खरीदने के बाद आपको संपत्ति पर कब्जा कब प्राप्त कर लेना चाहिए और कानूनी रूप से आप कब्जा कब प्राप्त कर सकते हैं


दोस्तों जिस दिन आप कोई भी जमीन खरीदते हैं उसकी  रजिस्ट्री करवाते हैं तो रजिस्ट्री की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद आपको उस संपत्ति पर कब्जा करने का अधिकार हो जाता है   क्योंकि आप रजिस्ट्री की भाषा को पढ़ेंगे तो वहां पर स्पष्ट शब्दों में लिखा होगा कि मैंने आज से ही क्रेता को कब्जा व  दखल देने का अधिकार दे दिया है   

और इस अनुसार आप उस रजिस्ट्री की संपत्ति पर  तत्काल कब्जा कर सकते हैं   तत्काल कब्जा करने के लिए यह भी जरूरी हो सकता है अगर उसमें कोई फसल खड़ी है तो आप उस फसल का भी अंतरण करवा लें जिससे आपको  कोई   परेसानी न आए 


सोमवार, 1 मार्च 2021

crpc 41 पुलिस बिना वारंट की कब गिरफ्तार कर सक्ती है

CRPC 41 पुलिस वारंट के बिना कब गिरफ्तार कर सकेगी
 मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और वारंट के बिना किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है-

क. जो पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में  संज्ञेय अपराध करता है  तब 

ख. जिसके विरुद्ध कोई उचित परिवाद किया गया है या यह विश्वसनीय सूचना प्राप्त की गई है या पुलिस को युक्तियुक्त संदेह होता है कि उसने ऐसी अवधी के कारावास से दंडित संज्ञेय अपराध किया है जो 7 वर्ष से कम है या जो 7 वर्ष तक का हो सकता है तो-

1.पुलिस अधिकारी का ऐसे परिवाद सूचना या संदेह के आधार पर विश्वास  होता है कि ऐसे व्यक्ति ने यह अपराध किया है 

2.पुलिस अधिकारी का समाधान हो जाता है तब
ऐसी गिरफ्तारी निम्न  कारणों के लिए आवश्यक है-

क. ऐसे व्यक्ति को अग्रेतर (आगे) अपराध करने से रोकने के लिए

ख.अपराध का उचित अन्वेषण करने के लिए

ग. ऐसे व्यक्ति को अपराध के साक्ष्य को मिटाने या ऐसे  साक्ष्य में किसी प्रकार की छेड़छाड़ करने से रोकने के निवारण करने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है

घ. ऐसे व्यक्ति को मामले के तथ्यों से परिचित किसी व्यक्ति को धमकी देने या वचन देने के निवारण करने के लिए ताकि उसे न्यायालय या पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तत्व को प्रकट करने के लिए  विमुख किया जा सके

ड.क्योंकि जब तक ऐसा व्यक्ति गिरफ्तार नहीं किया जाएगा उसकी न्यायालय में उपस्थिति जब कभी आपेक्षित  हो ,सुनिश्चित नहीं की जा सकती

और पुलिस अधिकारी ऐसी गिरफ्तारी करने के दौरान लिखित में अपने कारणों को   लेखबंद्द करेगा

( लेकिन अगर कोई पुलिस अधिकारी ऐसे सभी मामलों में जिसमें किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी  इस  उपधारा के अधीन अपेक्षित (  जरूरत या आवश्यकता) नहीं है, गिरफ्तारी न करने के कारणों को भी लिखित रूप से अभिलिखित करेगा)

ख (क) जिसके खिलाफ विश्वसनीय सूचना प्राप्त की गई है कि उस व्यक्ति ने संज्ञेय अपराध किया है जो ऐसी अवधी के कारावास से  दंडनीय है जो 7 वर्ष से अधिक या जुर्माने सहित  या जुर्माना रहित  या मृत्युदंड  के कारावास से दंडनीय है तो पुलिस अधिकारी को ऐसी सूचना के आधार पर विश्वास करने के कारण इसी व्यक्ति ने अपराध किया है उसे गिरफ्तार किया जा सकता है

(ग)  जो इस संहिता के अधीन या राज्य सरकार के आदेश द्वारा अपराधी घोषित किया जा चुका है 

(घ) जिसके कब्जे में कोई ऐसी चीज पाई जाती है जो चोरी की संपत्ति है या ऐसी कोई चीज जिस पर चोरी का संदेश जाता है  चोरी की है और जिस चीज के बारे में कोई ऐसी चीज है जिस पर अपराध करने का उचित रूप से संदेह किया जा सकता है

(ड) जो पुलिस अधिकारी को उस समय बाधा पहुंच आएगा जब वह पुलिस अधिकारी अपना कार्य कर रहा है या जो विधि पूर्ण अभिरक्षा से निकल कर भाग  है या निकलकर भागने का मन कर रहा है 

च. जिस पर संघ के सशस्त्र बलों में से किसी से अभित्याजक होने का उचित संदेह है

छ. जो भारत के बाहर किसी स्थान में किसी ऐसे कार्य को करेगा जो भारत में किया गया होता तो अपराध के रूप में दंडनीय होता और जिसके लिए वह  पृत्यर्पण संबंधी किसी विधि के अधीन या अन्यथा भारत में पकड़े जाने का  भागी है जिसके  विरुद्ध  इस बारे में उचित परिवाद किया जा चुका है या विश्वसनीय इंतला प्राप्त हो चुकी है या उचित  संदेह विद्यमान है कि वह ऐसी  संबद्ध रह चुका है

ज.जो छोड़ा गया सिद्धदोष होते हुए धारा 356 की उप धारा 5 के अधीन बनाए गए किसी नियम को भंग करता है

झ, जिसकी गिरफ्तारी के लिए किसी अन्य पुलिस अधिकारी से लिखित या मौखिक अध्यपेक्षा प्राप्त हो चुकी है परंतु है तब जब की अध्यपेक्षा में उस व्यक्ति का जिसे गिरफ्तार किया जाना है और उस अपराध का या अन्य कारण का जिसके लिए गिरफ्तारी की जानी है विनिर्देश है और उससे यह दर्शित होता है की अध्यपेक्षा जारी करने वाले अधिकारी द्वारा वारंट के बिना वह व्यक्ति विधि पूर्ण गिरफ्तार किया जा सकता था

crpc sec 42 .  जब कोई व्यक्ति जिसने पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय अपराध किया है या जिस पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय अपराध करने का अभियोग लगाया गया है उस अधिकारी की मांग पर अपना नाम और निवास बताने से इंकार करता है या ऐसा नाम या निवास बताता है जो कि पुलिस अधिकारी को वह गलत लगता है तो वह इस संदेश में कि अभियुक्तों द्वारा पता नाम गलत है इसलिए वह ऐसे व्यक्ति को नाम और निवास निश्चित करने के लिए गिरफ्तार कर सकता है


विकास प्राधिकरण अप्रूव्ड कॉलोनी प्लाटिंग कौन सी होती है और फ्री होल्ड कॉलोनी जमीन कौन सी होती है

1 - D A  एप्रूव्ड ( डी ए से स्वीकृत)  वह जमीन जो विकाश प्राधिकरण किसानों से खरीद कर स्वयं या किसी बड़े बिल्डर से शहरी आवासीय योजना के मानको क...